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अध्यात्म बारहखड़ी छ, कहिये ससि मंडल नां, त्रिभुवन चंद तु ही निज धा।
थिरचर मांहि तिहारी तुल्य, और न दूजो आप अतुल्य ।। ३०॥ अथ बारा मात्रा एक कबित्त मैं।
- सवैया ३१ - ठट्ट को धनी अनादि, ठाकुर तु ही जु आदि,
ठिलै नांहि ठेल्यौ तात, ठीक वात भासई। ठुकराई भरयो सदा, ढूंणी नांहि देत कदा,
ठेठि को दयाल देव दया कौं प्रकासई । है है बाजे वाचैं नाथ, ठोकि काढे कर्म साथ,
ठौर दी सुसाधनि कौँ पापनि को नासई। ठंढि नांहि उश्न कोऊ ठः प्रकास आप होऊ, परम पुनीत देव दूरि नांहि पासई ॥३१॥
- दोहा - ठकुराई तेरी महा, सत्ता परणति सोय!
देवि भवानी लच्छिमी, सोई दौलत्ति होय॥३२॥ इति ठकार संपूर्ण । आगैं डकार का व्याख्यान करै है।
- शोक - डकाराक्षर करि, सर्व प्रांणि हितं करं। चंदे लोकाधिपं देवं, सर्व मात्रा प्रकाशकं ॥१॥
.... दोहा ... डकारांक आगम विर्षे, शंकर को है नाम। और न शंकर दूसरौ, तू शंकर गुन धांम॥२॥ डकारांक फुनि लोक मैं, ध्वनि को नाम प्रसिद्ध। और न ध्वनि दुजी प्रभू, ध्वनि तेरी गुणवृद्ध ।। ३ ।।