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अध्यात्म बारहखड़ी
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चौप
ठुकराई तेरी अति जोर, जामैं एक न दीस चोर । तुव ठुकराई देख्यां देव, सव चाकर दीखें अति भेव ॥ १८ ॥ ठूंठ समान वहिरमुख जीव, तोहि भजै नहि राचि अजीव । ठूंठ समाना मुनि भी कहे ध्यानारूढ स्वभावें लहे ॥ १९ ॥ इहै ठूंठता करि हरि देव, वह ढूंढता हरि जु अच्छेव । करण हरण कौ विरद जु एह, अब हरि अपनी भक्ति हि देह ॥ २० ॥ दूंणी देय मोह नैं मोहि, लूट्यो अति भाष कह तोहि । इह दूंगों दीयाँ जगराय क्यों धारी तैं माया काय ॥ २१ ॥ वेठि गुणाढ्य महाप्रभु तूहि द्याय राय गुन माल समूहि । तो सम ठेठर और न कोय, प्रभू ठेठि कौं ठाकुर होय ॥ २२ ॥ ठेल्यो विलै न तू वरबीर, टेघी जग की तू अतिधीर । ठेक लगै नहि कबहू नाथ, भगति नाव में मुनिजन साथ ॥ २३ ॥ तो सम्म खेबट और न कोय, भव जल पार करै भवि सोय । ठें बाजे वाजे देव, तेरें कोटि असंखि अछेत्र ॥ २४ ॥ ठोकर एकहि सौं भ्रम कोट, छाहे तैं राखी नहि वोट । ठोक ठाक करि काढे कर्म, तैं दासा तारे बिनु धर्म ॥ २५ ॥ ठोठी वहिरातम जे जीव, तोहि लहैं नहि तू जगपीव । विना ब्रह्म बिद्या नहि कोइ, पावै तोहि जु निश्चै होय ॥ २६ ॥ ठौर धेरै तू ही जु स्वभाव, ठौर देय तृ ही जगराव । ठौर पछारे तैं हि विभाव, तेरी ठौर न कालड पाव ॥ २७ ॥
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ठौहर देहु हमैं भगवान, मति भरमावैं परम सुजांन । ठंढि न उश्न न वरख्खा रती, काल न जाल देहु सो गती ॥ २८ ॥ ठंठ जीव परिणांम कठोर, ते नहि पांवें तोहि अरोर । ठः कहिये अति धन कौ नांम, तू अति धनदायक गुन धांम ॥ २९ ॥