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अध्यात्म बारहखड़ी
टण टण वाजें तैरै वाजे अति कोटि भेव
जीति की जु टेव तेरी अतुल अछेव है। तेरे पुर मांहि नांहि सीत घाम कोई धाम
टपका न पर जहां रति को न भेव है। टपके अमी अपार तेरे वैन सुनें सार
त्रिश्ना को न नाम रहे स्व रस स्व बेव है। अनुभौ की कला तोते पाइए त्रिलोकनाथ, ____ अनुभव को दायक तू देव एक एव हैं ।। ६ ।। टहल तिहारी मोहि देहु जू महल केरी
टहल्यो अनादि को सु मूलि मोमैं ताब नां। तिहारी टहल पाय हौंहगौ जु निरखेद
रावरी टहल विनु मोमैं कछु आब नां। टारयो नांहि टरूं स्वामी अब तो उधारि मोहि
राष्ट्ररी, करो जिन राखो पाति आबका। नांहि कछू चाहि मरे, तोकनां न मांगू और,
एक निजभाव दै विभावनि कौं दाब नां ॥७॥ टांडौ लार्दै ऊरध कौं भरि जु अनंत भाव,
तेई पुरि तेरै राव आवै अति न लें। टांगरौं सवै जु, त्यागि अनुभौ के पंथ लागि,
तो सौं अनुरागि मुनि देखें दिव्य नैंन तैं। टाक हैं सिधंत मांहि भूमि को जु नाम ईस,
ज्ञान की धरा अधीस पेखें तुव वैन तैं। टावर औ रावर सबै जु त्यागि वडभाग तेरै ई प्रसाद साध जीते मन मैंन तैं॥८॥
- छंद वेसरी - टामटूम सब त्यागि मुनीशा, रहैं तो मई ऋषि अवनीसा । टापू सम ए लोक अलोका, तेरे ज्ञान सिंधु मैं थोका॥९॥