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________________ १३२ अध्यात्म बारहखड़ी - श्रीक - टकाराक्षर कर्तारं, चिच्चिमत्कार लक्षणं वंदे देवाधिपं देवं, सर्वभूत हितं परं॥१॥ - दोहा - टरयो नही टरि है नहीं, टरै न कवहू देव। अटल अचल अति विमल तू, दै स्वामी निज सेव॥२॥ एक टकोरौ धर्म कौ, तेरै वाजै नाथ । तू धरमी धरमातमा, धर्मनाथ गुण साथ॥३॥ - सवैया - ३१ - टक बंधी वात जाकै, टकसाल शुद्ध जाकी, टकटकी तोहि माहि, सोई निज दास है। टगी नांहि टची कोऊ, त्यागे राग दोष दोऊ, टकेनि को त्यागी, वडभागी सुखरास है। टरै नां भगति से जु, डरै नां जगत से जु, करै नाहि कामना जु तेरोई विलास है। टगटगापुरी अर राम की कहावै राज, तहां जायवे को चित्त जगतै उदास है।।४।। टल्ला नांहि लागै जाकौं, काल को कदापि नाथ, पायो तुव साथ, जानें परम प्रकास है। जाके एक टल्ला ही सौं भागे मोह आदि सव, __पायो शुद्ध वुद्ध ज्ञान आतम विकास है। टट्टमार लायक विभाव सव काढे जानें बाढे भवभाव निज भाव को विभास है। तेरौ ले सरन औ मरन को स्वभाव डारि राग दोष मोह टारि भायौ जू विलास है॥५॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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