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अध्यात्म बारहखड़ी
अकार जु नाम कहैं श्रुति माहि, जु गावहि ता कउ संसय नांहि। तु ही सव गावइ धर्म जु रीति, तु ही जु निवारइ पाप अनीति ॥ ४॥ प्रभू सुर सप्त जु भासइ तूहि, तुझै प्रभु गांवहि देव समूहि। नहीं कछु राग तु ही जु विराग, महा बड़भाग, सदा अविभाग॥५॥ अकार जु नाम जु जर्जर 3न, तु ही मधु बैन सुकेवल नैंन । जर्फे सुर जर्जर, वृद्ध महान, तथा सुर जर्जर क्रोध जुवान ।। ६ ।। न क्रोध सुरूप न ही प्रभु वृद्ध, तु ही जु नवल्ल अचल्ल अगृद्ध। महारस रूप सु अमृत वैन, सुनाय हमैं प्रभु देहु सुचैंन ।।७।।
– सवैया इकतीसा - मूढता न तेरै, मांहि मूढ़ तोहि पाबैं नहि,
___ इंद्रिनि के विषया न तोकौं कहूं पांवही। विषई लहैं न तोहि, निर्विषे करे जु मोहि,
ज्ञायक तू तत्व को सुनायक वतांवहीं । गावै तू सवै जु भेद जर्जरौं न वोल तेरौ,
मिष्ट इष्ट भासै त जु मुनि जन ध्यावही। सर्वाक्षर मूरति तू क्यों अकार मैं न होय, सुर नर नाग खग एक तोहि गांवही ॥ ८ ॥
- दोहा - निर्विषया शक्ती जिको, शिवाभवा शिवभूति ।
मा पा जु रमा महा, सो दौलत्ति विभूति॥९॥ इति अकार संपूर्ण । इति श्री भत्तयक्षर मालिका अध्यात्म बार खड़ी नांमध्येय उपासना तंत्रे सहश्र नाम एकाक्षरी नाममालाधनेक ग्रंथानुसारेण भगवद्भजनानंदाधिकारे आनंदोद्भव दौलति रामेन अल्पबुद्धिना उपायनी कृते ककारादि त्रकारांत दशाक्षर प्ररूपको नाम द्वितीय परिच्छेदः ॥ २॥ आरौं टकार का व्याख्यान कर है।