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अध्यामबारहखड़ी
झीणां तू अति पुष्टा, झोलि नहीं रावरी धरा माही। तू अति उच्च सपष्टा, कर्दम करिमा कभि नाही॥ १८ ॥ झुणकारा अति हो, वाजै वाजा अनेक भांतिनि का। तुब भजि कलिमल खोवे, कर्म प्रहारी झुझारनि का॥१९॥ झुकै जीव जो कोई, तेरी या तीन लोक के नाथा । सकल कल्याण जु होई, सौई पावै जु तुष साथा ।। २० ।। झुकै न तू अध मांही, तो मांही धर्म देखिये अतुला। तू अधरम मैं नाही, नाही भाव धरै समला ।। २१ ।।
- सवैया - ३१ - झूठी है इकंतवाद जामैं नाहि स्यादवाद,
क्षणिक प्रवाद जाकौं वोध मत कहिये। झूठौ विपरीत महा जामैं जीव घात कहा,
झूठौ संसथाप जाको भूलि हू न गहिये। झूठी नास्तीकवाक जाको कहैं चारवाक,
झूठे कौल कापालिक करुणा न लहिये। झूठौ विनै मिथ्या जामैं पूजिये जु सवै देव, झूठी है अग्यांन जातें भ्रांति माहि वहिये ।। २२ ।।
- सोरठा - झूठ समान न पाप, तेरै झूठी वात ना। झूठे पावै ताप, भक्ति लहैं साचे नरा ॥२३॥ साच हु झूठ विसेस, जामैं जीव दया नहीं। करुणामई असेस, सत्यादिक भासे तु ही ॥२४॥ झूठे सब ही देव, काल जीतिवे सक नहीं। तेरी करहि जु सेव, ते ही काल जीते प्रभू ॥२५॥ झूठे मिथ्या पंथ, तिन मैं तेरी भक्ति नहि। झूठे मिथ्या ग्रंथ, जिन मैं तुब घरचा नहीं ।। २६ ॥