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अध्यात्म बारहखड़ी
अथ बारा मात्रा एक सवैया मैं।
___ .- साया - ३१. .-. .. .. . . . जगत की तारक तू जाग्रत सुरूप देव
जिननाथ जीति रूप वीतराग है सही। जुरै नांहि तो सौं कोऊ जूनौं तू न नौतन है,
जेलि से निकासै तू हि लोकनाथ है तू ही। जैन को प्रकासक तू ज्योति को निवास सदा
जौन्ह तेरी कीरति सी चंद मांहि है नहीं। जंगम सुथावर को एक रछिपाल तू ही, जः प्रकास सर्वभास चिद्विलास है वही ।। ५८ ॥
- दोहा - तेरी जाग्रत चेतना, ज्ञान चेतना लच्छि। रमा भगौती शंकरी, दौलति है परतच्छि । ५९ ॥ इति जकार संपूर्ण । आरौं झकार का व्याख्यान करै है।
- भोक · ... झषध्वज रिपुं धीरं, सर्व प्राणि हितं परं। सर्व मात्रामयं धीरं, बंदे देवेंद्र वंदितं ॥१॥
- दोहा - झ कहिये भैरव प्रभू, तृ भैरव को नाथ। शांत देव परतक्ष तू, कर्मदलन वडहाथ ।। २ ।। झ कहिये फुनि बंध कौं, तेरे बंध न कोय। झ महिये घर्घर स्वरा, तु सुस्वर प्रभु होय॥३।। झलक झलक तेरी छवी, झलझलाट तू देव । झमझमाद करि सुरनरा, करहि नृत्य धरि सेव ॥ ४॥ झलमलाट वहिरंग ए, तोहि लहैं नहि नाथ । तृ चैतन्य प्रकास है, अति विलास गुन साथ।। ५ ॥