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अध्यात्म बारहखड़ी
जैत्र शस्त्र को धार, कर्म निपातक तू प्रभू। जीव दया प्रतिपार, जैनी जैन प्रकास तू॥ ४५ ।। जैत लहैं जगजीव, तुत्र भजियां परमेसुरा। ज्योति रूप त पीव, ज्योती सर जोगीसुरा ।। ४६ ।। ज्योति लहैं तुव ध्याय, जगत ज्योति तू जोगिया। जोलजाल नहि राय, पार उतारै बेगि हो। ४७ ।। जोरावर अति मोह, पारै तौलें आंतिरौ। मे तू निरमोह, मोहतनी जोरावरी ।।४८ ।। जोम धेरै जगनाथ, हम लोगनि सौं कर्म ए। जोम चलें नहि नाथ, तो आरौं सर्व कर्म की॥४९॥ जो है वेग जु नाम, एकाक्षर माला विषै। वेगि उतारौ राम, भवसागर गंभीर" ।।५० ।। जो तेजस्वी नांम, तू तेजस्वी प्राक्रमी। जो जो कहिये रांम, सो सो तोहि फवै विरद ।। ५१॥ जौ है जन को नाम, जन तेरे तू जनपती। तेरी कीरति रांम, जौन्ह सोइ और नं को ।।५२ ॥ जंतुनि को रछिपाल, जंगम थावर नाथ तू। दया धर्म प्रतिपाल, जंतु तिरै तुव भजन तैं ।। ५३ ।। जंघाचरण साध, जे अकास गमन जु करें। तोहि भ6 जु अबाध, तू अगाध परमातमा ।।५४ ।। जंबू आदिक दीप, लवणोदधि प्रमुखा जलधि। तू भासै अवनीप, सर्व दीप कौ नाथ तू॥५५।। जंबू फल नहि भक्ष, साधारण वर्जित सवै। थारहि तेरी पक्ष, ते न अभक्षा आदरें ।। ५६ ॥
- दोहा - जः कहिये सिद्धांत मैं, है जन को ही नाम ।
जन उधरै भव जलधि तैं, तू तारक गुण धाम ॥५७॥ * तेरी जाग्नत चेतना, ज्ञान चेतना लच्छि।