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________________ १२४ , जुटें न तोसौं जड सवै कदैं न मोतें पासि ए, काटि भर्म दें — सवैया ३१ जूवो सब दोषनितें गुननि को नाथ महा जूवा मांस मदिरा को निंदक महाप्रभू । गनिका को निंदक औ निंदक अहेरा हू कौ चोरी चारी जारी तजि संतनि गहा विभू । परदारा संगम निषेद्यो जांनैं पाप महा हु विसन सेय कैं न काहू नैं लहा स्वभू । वह प्राणिनाथ प्राणि प्राणनि को रछिपाल, उपज्यो न काहू काल सूत्र मैं कहा अभू ॥ ३७ ॥ टूटैं तोहि सौं कर्म । धर्म ॥ ३६ ॥ -- अध्यात्म बारहखड़ी — सोरठा जून तू अतिनाथ, काल अनंतानंत कौ। नित्य नवल गुन साथ, जूनौं तू नहि देखिये ।। ३८ ।। - देकै जग सौं पूठि जेता जग कौ तू हि तू औसौ जु प्रभूहि, जेते जीव अजीव तू त्रिभुवन को पीव, अंतरजांमी सवनि कौ ॥ ४१ ॥ विषै भोग जग जूठि सो दासा चाहें नहीं । निह्कामा है गुन रटैं ॥ ३१ ॥ जेठा सब मैं तू सही । जे जन हीं तारै तुरत ॥ ४० ॥ तेते सव तुव ज्ञांन मैं । लहैं जेहली नांहि, तू जेहलता दूर कर । परे जेलि के मांहि, जीव तुही काठै प्रभू ॥ ४२ ॥ तो सव हैं जेर, जेरज अंडज उदभवा । तू मरजादा मेर, सब कौ रक्षक ईसरा ॥ ४३ ॥ जेठमास गिरसीस, तापतपै तौंपनि प्रभू । तुव भजिया विनु ईस, कटै कर्म की पासि नां ॥ ४४ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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