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________________ अध्यात्म बारहखड़ी छं भाषै मुनिराय, नाम तटस्थ हु वस्तु कौ । तू तटस्थ सुखदाय और सवै वृद्धि जु रहे ॥ ३९ ॥ छंद न बंध न कंद, छंद सवै परगट तू हैं त्रिभुवन चंद, तिमरहरन अमृत छेदन को है नांम, छ: कहिये आगम तू छेदें प्रभु कांम, क्रोध आदि दोषा छः संवर कौ नांम, भाषै संवरधर तू जिनवर विश्राम, संवर रूप अनूप अथ एक कवित मैं बारा मात्रा । — करै । झरन ॥ ४० ॥ विषै । घनें ॥ ४१ ॥ संवैधा - ३९ छल रूप लोक इहै, छार समभूति इहै, असौ जांनि छिन हूं न भूलें तोहि जोगिया । छीजें नांहि खीजें कभी छुटै जग जालतें जु कुर्दै नांहि काल पैंसु छूटैं भव रोगिया । छेदन और भेदन कौ नांम हैं न रावरै जु छैल तोसौ दूसरों न आनंद कौ भोगीया । छोड़े तैं विभाव भाव छोटिक न छंद राव - मुनि । — तू ॥ ४२ ॥ छः प्रकास है अभास परम असोगिया ॥ ४३ ॥ ११९ दोहा छटा तुल्य जगभूति है, तु विभूति है नित्य । छति तेरी सत्ता रमा, संपति दौलति सत्य ॥ ४४ ॥ इति छकार संपूर्ण । आगें जकार का व्याख्यान करे है।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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