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अध्यात्म बारहखड़ी
छैल तोसौ दूसरौं न दीसै जग मांहि और
आनंद स्वरूप महा जाहि कछू सोक नां । रमा को रमन हार आपद हरन हार,
सकति अपार एक तू ही है विलोकनां ॥३१ ।। छोटे मोटे जीवनि को रक्षक है तू ही नाथ,
छोटे मोटे दोषनि कौ तू ही हर देखिए। तेरी सेवा विनु छोछि करंनी न आवें कामि,
करनी को मूल तेरी भक्ति जु खिसेखिये। छोहर है तेरे सव सुर नर नाग मुनि
तू है तात सबको, प्रसिद्ध इह लेखिये। तातें सब त्याग जोग तू ही एक लैंन जोग सबै जग त्यागि एक तोहि कौं जु पेखिये ।। ३२।।
- सोरठा - छोति हरै मल रूप विमल रूप तू देव है। छोप नाहि जग भूप तू अछोप परमेसुरा॥३३॥ छोभ न छोह न देव, तो सम सोभ न जगत मैं। छोड़े दोष अछेव गुन निवास तू राजई ।। ३४ ॥ तू नहि आवै हाथ, छोच्छ पोल वातांनि तैं। तू मुनि गन को नाथ, योग धारि योगी भ6।।३५॥ छौंना नहि तू नाथ, तात मात सब जगत को। सुरनर मुनिवर साथ, तोहि भ6 पुरखा तुही ।। ३६ ॥ छौटिक अर सव छंद तू हि प्रकासै शब्द सहु। तू आनंद सुकंद, छोगा पाय न अर्वरा ॥३७॥ छ कहिये श्रुति माहि, निरमलता को नाम है। तो विनु निर्मल नाहि, समल सबै ही जगत के॥३८॥