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अध्यात्म बारहखड़ी छींट अर पांटवर अंबर सकल त्यागि
होय दिगंबर सुदास करैं साथ है। तू ही छीनकाम सब छीनता हरन राम, :. .मलपुरा . तुझाचे सौ. पाथ है। छीनता हरनदेव अतुल अनंत भेष,
तारि भव सागर से तू हि बडहाथ है।। २८ ।। छीला के जु पात सम तेरै ढिग चंद सूर,
छुट्यो तू न बंधै कभी अमल अबंध है। छुरिका न पासि अर पासि सब काटै तूहि
छुट्टै तोहि ध्यायें छुट काल मांहि बंध है। मेरी देह पूतिगंध छुऊं केसैं तोहि ईस,
तू तो अति सुंदर सुमूरति सुगंध है। छूटि मेरी करौं देव छूटि करि करौं सेव
तोहि नांहि सेवें सोई हिरदै को अंध है ।। २९ ॥ छुछि सम जग भोग, कणरूप भक्ति तेरी,
छुवै नांहि तोकौं कभी रागादिक रोगिया। छेद भेद खेद नाहि, छेव नांहि तेरौं कभी
छेदक तू पासि को मुनिंद है अरोगिया। छेक नांहि तेरी सेवरूप नाव के जु भूप,
खेवट अगाध तू हि, जनम को जोगिया। छेल्लादिक जीवनि की रक्षक दयाल तू हि,
छेह नांहि पांवें मुनि निज रस भोंगिया।॥३०॥ छेदन औं भेदन सुवंधन सुबध और
अतिभाररोपण जु अन्नपान रोकनां। दया के विनासक ए भक्ति कौं न आंवन दें,
करें जैसे काम सठ नाथ तेरे लोक नां।