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अध्यात्म बारहखड़ी
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- दोहा - छह अस्सी जु छियासिया, ताके आधे खंध। हाँहि तियालीसा प्रभू चौथे ठांणी अबंध ॥ १२॥ छह निवै जु हजार ही, चक्रवर्ति तजि नारि। तोहि भनँ छहखंड को, राज त्यागि ब्रत धारि।।१३।। छह निवै लक्षा प्रभू, तेरे देवल पौंन । कुमरदेव धारै सदा, मुनी भ6 गहि मौन ।। १४ ॥
__ - मालिनी छंद - छाया माया, नाहि तेरे जु काया, छायाकारी, सर्व को तूहि राया। छांनी नाही, देव विख्यात तू ही, छांनौं नाथा, नांहि पार्वै समूही ।। १५ ।। छात्रा नाही, छाक नाही जु तैर, त्राता तू ही, भ्रांति आवै न नेरै। छागा बोका, जे हत घोर पापी, नर्का जावै, कष्ट पार्दै सत्तापी ॥१६॥ छाया तेरी, नां लहें हिंसका जे, पावै दुख्या, जीव विध्वंसका जे। तू है रक्षा, कारणो सर्व जीवा, पापा चारी नाहि पावै कुजीवा ।।१७।।
– चौपड़ी -.. छागलि को जल है अति निंद्य, गावै तेरौ श्रुति जगवंद्य । छाज चालनी चर्म अलीन, बिना चर्म धारै जु प्रवीन ।। १८ ॥ छाछि दही ए विदल जु जुक्ता, तेरे दास गि. हि अजुक्ता। छाछि दही वसु पहर वितीत, तू हि निषेदै देव अजीत ॥१९॥ छाछि दही पानी इत्यादि, कुल किरिया विनु लेवौ वादि। छाछि समान सकल संसार, घृत रूपी तू जग मैं सार॥२०॥ छाज ममान गुनग्रह होय, तब पांव तोकौं प्रभु कोय । छांटि छांटि सब जग परपंच, एक तोहि ध्यां सुख संच॥२१॥ छानि मूल कूपल फलपात, वीजांकुर रक्षक तू तात। छांडि विषय इंद्रिनि के साथ, तोहि भ6 तू देव अबाध।। २२ ।।