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________________ ११४ अध्यात्म बारहखड़ी छक नांहि तेरे कोऊ, छक्यो तू स्वछति मांहि केवल ही मांहि तेरी महिमा वसति है। छल तैं चाय देव दें जू भवतार सेव, अगनित गुन तू ही अगनित छति है ॥ ८ ॥ छति तेरी सत्ता निज अतुल अनंत रूप छति कौ निवास तू अछति को निवारका । छती छिटकाय तू जु है रह्यौ दिगंबर हैं, अंवर को अंवर तू जीव को सुधारका । छन्न नांहि काहू काल उघड्यो जगतपाल छजै तोकौं लोकभार भविनि कौ तारका । छह भेद कारक तू धारक परमतत दास को उधारक तू मोह कौ प्रहारका ॥ ९ ॥ छह द्रव्य भासक तू, छह काय पीहर है, छह दस कारण कौ कारण अनादि का । छहवीस मोह भेद नाहि तोमैं तू अमोह, छहतीस गुन धार सूरि भजैं आदि का । छह चालीसा जु दोष टारि मुनि भोजन लें, तेरे ही उदेस रीति गहँ स्यादवादिका । छह चालीसा जु गुन आदि हैं अनंत तोमैं मुनिनि कौ तारक तू देनहार दादिका ॥ १० ॥ छहपन देवि जे कुमारिका कहां नाथ, भजैं तोहि भावकरि देव सिर नांवही । छह परि शून्य एक साठि जे कहा ठीक, साठि ही हजार सुत सगर के ध्यांवहीं । छहसठि आध सिंधु थिति सुर नारक की भासै उतकिष्ट तूहि मुनि गुन गांवही । छह सत्तरी जु लाख देवल तिहारे नाथ, छह भेद भवन निवासिनि मैं पांवही ॥ ११ ॥ * काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मर
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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