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अध्यात्म बारहखड़ी
हैं चोर विमोहा, चोर जु द्रोहा, चोर जु छोहा, सर्वहरा । हैं परमत चोरा, करन जु ढोरा, चोर न थोरा, गर्व धरा । लागे प्रभु संगा, सर्व इकंगा, मोह प्रसंगा, शुद्धि हरा । दारे सव चोरा, तू अति जोरा, हरइ जु रोरा ऋद्धि करा ॥ ८० ॥
स्वोरछा
चोखी तेरी देव, चोख गहौ जगनाथ जी ।
प्रभु ॥ ८१ ॥
जो ।
लूट्यो मोहि अछेव, तेरे राजस मांहि मेरौ द्याय सुमाल, ज्ञानानंद स्वरूप चोर पकरि जग भाल, लाल राव तू जगत कौ ॥ ८२ ॥ चोट लगाई नाथ खोट कियो मुझ सौं इनां । करि कै मेरो साथ, पारयो तोसौं आंतिरौ ॥ ८३ ॥ लग्या चोल उतारि कियो निलज्ज महा मुझौं । कूं को तेरै द्वारि ऊपर करि अव ईसरा ॥ ८४ ॥
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छंद भुजंगी
कियो चौर चौपट्ट चौरा जु दुष्टा मिली चौकरी पाप रूपा सपष्टा । तु ही चौर दंडा महासाधु तारी, सवै भ्रांतिहारी तु ही हैं बिहारी ॥ ८५ ॥ अचौकी कचारी तु ही लोकतारी, तु ही लोक चंद्रो मुनिंद्रो अपारी । कहा चंदनो जू कहा है सुचंद्रो, सुजैसौ तु ही सीतलो हैं मुनिंद्रो ॥ ८६ ॥ कहा चंद्र ज्योती यथा कित्ति तेरी, तु ही ज्योति रूपो धेरै ज्योति नेरी । सु चचत्प्रकाशा चमत्कार तू ही, सुचंड प्रचंडा तु ही है समूही ॥ ८७ ॥ सुचंडी न और रमा सोइ चंडी, जु ज्योती तिहारी, सुलक्ष्मी प्रचंडी । नही और चंडी सर्वे और मुंडी, सुचिच्छक्ति चंडी दयाला अखंडी ॥ ८८ ॥ नही चंचलाई नही कोतताई, तु ही निश्चलो निर्मलो लोकराई । तुझे कोय चंपै नही तू अचंपा, प्रभू नित्य चंगा अनंगा निकंपा ॥ ८९ ॥ नहीं चिंतयो देव तोकौं कटे ही, सु तारौं रुल्यौ नंत धारी जु देही । अव चंद्रनाथा सुधापांन देहो, अमृत्यू करौ देव तू है विदेहो ॥ ९० ॥
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