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अध्यात्म बारहखड़ी
अथ जीव संवोधन।
.- सवैया - ३१ ... चेति रे अचेत चेत चेतन को ध्यान करि
मूरिख है राच्यो कहा विषयनि के ठाट मैं! विप नौ अनंत काल सेये से अनादि ही के,
नीच ऊंच दसा तेरी भई भव वाट मैं। लेय लेय डारे से ही तेरे हैं उलाक सम,
जगत के भोग भया पग्यो कहा काट मैं। लाज नाहि आवै तोकौं छाद की अहार कर
वूड्यो कहा वावरे तनक आव घाट मैं ।। ७६ ।। अथ जीव भगवान स्तुति।
. - भुगी प्रथात ६. तु ही चैत्य चैत्यालयो द्वार मूला,
तु ही शुद्ध चैतन्य रूपी सथूला। तु ही नाथ चैतन्यता पुंज पूरा,
नहीं भाव तेरे जु चैतन्य दूरा।।७७॥ तु ही चैत्यभासी अचैतन्य नासी,
सदानंद तू ही महानंद रासी। तु ही चैत्य मांही तु ही सर्व माही, ___ करै चैन तू ही जु संदेह नाही ॥७८ ।।
___ - छंद त्रिभंगी - मन इंद्री चोरा हैं अति जोरा करहि जु भोरा ज्ञान हरैं। क्रोधादिक चोरा हैं अति घोरा, भवजल बोरा भ्रांति करें। ए विषच जु चोरा करहि जु जोरा अति सुख तोरा कष्ट धरै। मिथ्यात सजोरा, है अति चोरा, अनत चोरा, भोर करें ।। ७९ ॥