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अध्यात्म बारहखड़ी
सवैया
बेरी सब तेरी नाथ इंद धरनिंद भूति, चेरी तेरी देव अहमिंद्रनि की भूति है। चकि भूति चेरी अर चेरी असुरिद भूति
चेरिनि की चेरी खग चक्रि परसूति है । राज ऋद्धि चेरी अर खेरी भोग भूमि सबै,
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जो
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चेरी चंद सूर भूति जहां लौं विभूति है। अखिल हैं चेरी तेरी मैं हूं जव भयो चेरा,
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चेरों चेरी व्याहै यामैं कौन करतूति है ॥ ७० ॥
तू
चेरा जानि ज्ञान चेतना बिवाह नाथ, दोऊ पक्ष शुद्ध व बेटी सु वडेनिकी । सम्यक है वाप जाकौ दया हैं सुमात ताकी,
भाव हैं अनंत भाई लाडिली घनेनिकी । जती मत पीहर ननेरा गुरसंग जाकौं,
जांमैं नांहि विसन जु आगरी गुनेनिकी । औंसी प्यारी परनौं तौ गिनौं उपगार तेरौ,
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और भांति अरज गुदारों नांहि लेन की ॥ ७१ ॥ सोरठा
प्रश्न करे ह्यां कोय, चेरौ उत्तम कुल सुता । कैसे पर सोय, इह विनती नहि जोग्य है ॥ ७२ ॥
ताकौ उत्तर एह, इह चेरा नहि कुल वुरा । प्रभु की न्याति गनेह, और न चेरा
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न्याति है ॥ ७३ ॥
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फुनि उत्तर हैं एक जौं चेरा तौ राव कौ । इह धारौ जु विवेक, औरनि को सिरताज है || ७४ ॥
वड घर कौ चेरा जु, सो व्याह हू कुल सुता ।
तातैं इह हेरा जु, ज्ञान चेतना
दुलही ॥ ७५ ॥