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________________ १०८ अध्यात्य बारहखड़ी चूत वृक्ष आंब को है नाम, जग मांहि ख्यात __ तू है प्रभू आंव तैं अधिक सुरसाल जी। सूकै नांहि कवहू सजल धन जो सदीव, सम्यकदरस मूल अति हि विसाल जी। ज्ञान पेड ब्रत डाल संजम ही साखा अति शुद्ध भाव दल अति विमल प्रवाल जी। गुन ही सुफूल अर गंध निज परनति, केवल प्रभाव फल रूप जगपाल जी।। ६०॥ - सोरठा - चूरण दै सुविवेक, कर्म रोग लागे महा। तैं प्रभू जीव अनेक, चूरण दै निरज्जर कर॥६१॥ चूर कियो अति कूटि, लूटि लियो मोहादिकां। गयो नाथ अति टूटि, अव तौ प्रभु किरपा करौ ।। ६२ ।। चूंट चांद हरि देव, सेव देहु निहकांम जो । चेतन अतुल अछेव, तु ही चेतना निधि प्रभू।। ६३ ।। चेतनता दै ईश, चेतनता को पुंज तू। चेतन रूप अधीश, तू निधान भगवान है।। ६४ ॥ है सचेत मुनिराय, पाय रावरं उर धरै । ज्ञान चेतना काय, तु ही अकाय अमाय है।। ६५ ।। कर्म चेतना ईस, वहुरि कर्मफल चेतना। रूपभये जु अधीस, दै अव ज्ञान सुचेतना ।। ६६ ।। चेरा करि जगराय, पाय सेव द ईसरा। चेला करि सुखदाय, भ्रम घेरा काढिजी ।। ६७ ॥ चेला नहि तू नाथ, चेला सब तेरे प्रभू। तृ अचेल गुण साथ, चेल न देह न दिगपटा।। ६८ ॥ चेटक नाटक नाहि, अदभूत योगी नाथ तू। सव चेटक तो मांहि, चिमतकार कारण गुरू।। ६९॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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