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अध्यात्म बारहखड़ी
- भाकचतुर्वक्त्र १ चारित्री. चिच्चिमत्कार चिन्मयः । अचीवरों निराभरो, न च्युतो जन्म मृत्युहा ॥१॥ चूडामणिस्त्रिलोकेशो, चेतनाधिष्टितो सदा। चैतन्यादि गुणाधीशो, चोत्तमोसिद्धिदायकः॥२॥ मनश्चौरो जगच्चंद्रो, चंचकांचन वर्णभः। सर्वाक्षर मयो धीरो, सर्व मात्रा मयो विभुः ॥ ३ ।। चः प्रकाशो चिदाकाशो, सर्व लोकेश्वरो प्रभुः। मदीयां चित्त भूमौ सासदा तिष्टतु निश्चलः॥४॥
. दोह। - चतुरानन चतुरास्य तू, चतुर्वक्त्र तू देव । सव को अर्थ चतुर्मुखा, तु हि अनंत अभेव ॥५॥ चर थिर को गुरुदेव तू, चतुः शरण चउ रूप। चउ मंगल उत्तम तु ही, तू है चतुर अनूप ।।६।। च कहिये प्रभु चंद्रमा, तु है चंद्र सुनाथ। च कहिये सोभा सही, तू सोभित अति साथ ।।७।। च कहिये फुनि चोर कौं, चोर न पावै तोहि । तू हि मनोहर देव है, निज सेवा दै मोहि ॥ ८॥ च कहिये जु पुनह पुनह, वारंवार दयाल। तेरौ नाम जु लीजिये, तू अतिनाम विशाल ॥९॥ चउगति तैं प्रभु तारि तू, चउदह 6 जु निकाश। सूक्ष्म बादर त्रय विकल समन अमन जिय रास ।।१०।। ए पर्यापत इतर गुन, चउदह जीव समास । दंडक चउवीसांनित, कादि राखि निज पास।।११।। चउतीसौं अतिशय प्रभू, तू हि धरै जिननाथ । अमित अनंत जु अतिशया, तेरे तू अति साथ ।। १२ ।।