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अध्यात्म बारहखड़ी
घो कहिये श्रुति मांहि घंट का नांम है,
तू घंटाधर देव धुजाधर रांम है। घौरक तेरी मांनि करम सव नासिया,
घौरक जग की त्यागि दास गुन भासिया ॥ ४४ ॥ घंटा तेरै द्वार सवद अति ही करै,
घंटा कौ सुनि नाद सकल पातिग डरै । घंटा राज के कं हि कौ
घंटा तेरै द्वार छजै नहि आंन कौ ॥ ४५ ॥ घः कहिये श्रुति मांहि मेघ का नांम है, तू है मेघ स्वरूप परम रस जीवनि विश्रांम तापत्रय मेटई, तो सौ तू ही मेघ सिखी मुनि भेटई ॥ ४६ ॥
धांम है।
जंग
अथ बारा मात्रा एक कवित्त मैं ।
सवैया ३१
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घट घट नायक तू घात तैं रहित देव धिरयो हूं अनादि को सु तू छुडाय मोहि जी । घस्यो मोहि करमनि फेरयो तीन लोक मांहि,
घुण होय लागे वै जु कहाँ कहा तोहि जी । घूमता मिटाय मेरी घेरा तैं निकासि देव,
मैं जु चौधैं रावरी, सुद्रिष्टि तेरी होहि जी । घोष तेरौ सुनि कैं जु धौरक अघनि कीन
घंटाघर घः स्वरूप देख्यौ इकटोहि जी ॥ ४७ ॥
दोहा
सही तेरी क्रांति सुलच्छि ।
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तू धस्मर जग को कमला पदमा श्रीरमा सो दौलति परतच्छि ॥ ४८ ॥
इति घकार संपूर्ण | आरौं ङकार का व्याख्यान करें हैं।
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