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अध्यात्म बारहखड़ी
- सोरठा - घोर वीर तप भास, घोर भाव वर्जित तू ही। तू प्रभु रोर विनास, आस भविनि की तू सही॥३६ ।। घोष सवद को नाम, तेरै घोष न रूप जी। तू घोष निज धांम, महा घोर वीरो तु ही ।। ३७॥ घोटकादि चतुरंग, सेना तजि नरपति महा। तो सौं लाईं रंग, तेई तोकौं पांव ही ।। ३८ ।।
- छंद भुजंगी प्रयात - तु ही घोर तपिश ईशो अतापी,
नहीं घोर कर्मा तु ही है निपापी। प्रभू घोर संसार तारी तु ही है,
तु धोरे उभै धर्म धर्मी सही है॥३९॥ तु ही जो निषेदै वडे घोल कांजी,
अभक्षा वतावै दघि द्वेदलां जी। तु ही सत्य घोष सदाचार गावै,
भ● धर्म घोषा सुरा सीस नावै ॥ ४०॥ तजे घोष सर्वे भये साधु मौंनी,
जु संसार माया सुलग्गी अलौनी। सलौंनी तिहारी सुसेवा हि जांनी,
महा ध्यान रूढा भ6 तोहि ज्ञानी ।। ४१ ।।
___ - सोरठा . . घोर भयंकर नाम, तू नहि देव भयंकरा। कर्मनि कौं अति धांम, दीसै तू ही भयंकरा ॥४२ ।।
- अरिल छंद - घोणा विवर नु नाम नासिका छिद्र को,
धरि नासाग्र जु ध्यान सोच तजि उद्र को। एक चित्त करि तोहि जर्षे योगी महा,
है निरगंथ स्वरूप शुद्ध भक्ती लहा॥४३॥