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अध्यात्म बारहखड़ी
तू गोव्यंदपती सुपूज्य जगदीस है,
गोत न गात न धात तात अवनीस हैं। गौ कहिये जग मोहि गाय का नाम है, .
गौसुत सम हम मूढ भन्यो नहि राम है॥४५॥ गौ कहिये फुनि देवि सरसुती है महा,
सो प्रभु तेरी बांनि और गो ना लहा। गौसुतता प्रभु मेटि देहु गौ रावरी,
प्रभु छुडावो भ्रांति लगी इह बावरी ।। ४६ ।। गौण मुख्य सब भेद तू हि परगट कर,
तू नहि गौण स्वरूप मुख्यता तू धेरै। गौतमादि ऋषिराय भ6 तोकौं सदा,
तू हैं ग्रंथि वितीत ग्रंथ धर नहि कदा।। ४७।। ग्रंथ परिग्रह नाम तू न परिगह गहै,
ग्रंथि गांठि को नाम ग्रंथि भेदी लहै। ग्रंथ सूत्र सिद्धांत प्रकासै तू सही,
अति सुगंध अतिरूप भूप धारै तू ही ।। ४८ ।। गंध न रूप न शब्द सपर्शन रस धेरै, ।
तू अविकार अनंत सकल मल परिहरै। गंज गुननि को धरै तूहि पदमा वरै,
तोहि न गंजै कोय पराक्रम अति धेरै । गंगा जल सम चित्त शुद्ध करि भवि भजे,
गंगादिक देवी जु सेव कवहु न तजै ।। ४९ ॥ करि गुंजार सुशब्द तोहि जे पूज ही,
काम क्रोध मद मोह तिनहि नहि पूज हीं। गंतव्यं जिनधाम नित्य प्रति गुर कहै,
तेरी प्रतिमा पूजि भव्य इह दिढ गहै ॥५०॥