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अध्यात्म बारहखड़ी
गैल तिहारी सुगुन अनंतानंत है,
अति अनंत पर्याय स्वभाव अनंत है। गैल तिहारै लोक अलोका सब लग,
त्यागि कलपना जाल साध तोमैं पगे॥ ३८ ॥ ग्रैवेयक लौ जीव गये बहुवार जी,
तो विनु नाथ कदापि भये नहि पार जी। पार पहुंचैं जोहि भाव भक्ती धरै, ।
तू गोपति गोपाल तोहि लच्छमी वरै।। ३९ ।। गो इंद्री तू देव अतिंद्री नाथ है.
गो कहिये जल नाम तू हि आंत पाथ है। तपति हरन सुख करन दाह हरन जु तु ही,
गो बांनी तू बांनि प्रकासै सहज ही ।। ४० ।। गो कहिये सुर लोक तू हि सुर लोक दे,
सुरपति से0 पाय तू हि गुन थोक दे । गो है वज्र सुनाम तू ही बत्रांग है,
वजी तेरे दास तू ही ज्ञानांग है॥४१ ।। गो कहिये खग नाम तू हि खगपति प्रभू,
गो है छंद हु नाम तू हि भासै विभू। छंद रहित तू छंद भासकर देव है,
गो पृथ्वी को नाम करै भू सेव है॥४२॥ गोधर श्रीधर तूहि तुही गोनाथ है,
गो किरणनि को नाम तेहि तुव साथ है। गो आकास को नाम तु ही आकास सौं,
चिदाकास अतिभास तु ही प्रतिभास सौ ॥ ४३ ।। गो कहिये तरु नाम तू हि सुरतरू महा,
फल छाया दे ईश तो विनां है कहा। गो रक्षक तू गोप्प अगोचर गो परें,
गोचर केवल मांहि नहीं को तो परें ।। ४४॥