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प्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर
श्री लक्ष्मसेन मुनिवर सुगुरुयल संघ कल्याण कर ॥१६॥ ६८ ॥ ससुरण जगुल भंडार गुम्गहकरि जण मण रंजे । चडवि उवसम ह्यथर मयण महवाइ मंजे " रयणावर गंभीर पोर मन्दिर जिस सोहै ? लक्ष्मसेव दुइ पाट २६ विषण नौ । दीपंति तेज दणीयर जिसु मत्ती मण मारण हर । जयवंता चवय संघसु श्री धम्मंसेन मुनिवर पवर १६ पहिरवि सील सनाह तवह चरण कहिकलीय 1 क्षमा षडग करि धरवि गद्दीय भुजबल जय लखी । काम कोह मद मोह लोह श्रातु टालि । कट्ट संघ मृतिराउ म इणी परि प्रजुपालि ! श्री सम्मसेन पट्टोधरण पात्र पंक जे नरह नरिंदे बंदीइ श्री भीमसेन मुनिवर सही ॥१००॥ सुरगिरि गिरि को च पाच करि प्रति बलवती । कवि रणायर तीर पूहुत उय कोइ अामास पमाण इत्य करि गहि फर्मतौ कट्टसंघ संघ गुण परिलहि दुविह कोई लहतो । श्री मीमसेन पट्टह धरण गच्छ सरोमणि फुल तिली । जाणति सुजाणह जागा नर श्री सोमकीत्ति मुभलो ।। १०२ ।।
छिपि नहीं ।
तरंतौ ||
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नरहसि अठार मास प्राषाढद्द जाणु 1 प्रक्कवार पंचमी बहुल षष्यह वषाणु
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पुण्वाभद्द नक्षत्र श्री सोमीत्रि पुरवरि । सत्यासी वर पाट तणु प्रबंध जिरिए परि !| जिनवर सुपास भवन की श्री सोमकीति बहुभाव घरि । जयव ंत रवि तलि विस्तरू | श्री शांतिनाथ सुपसाउ करि ।। १०३ ।।
इति श्री गुरुनामावली