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________________ ५२ आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर कुटकुतवमि चाखोउ, जांण व विनाए । तिगृह विषि हुषारीउ, राखी को लोगो न कारण ।। १३३ ।। far धारया धरणी पडयु हूउ एक पोकार 1 पड तिमि त इय भव्यु विष तया वैद ह्कार ।। १६४ ।। " मुझ वाणी जब सांभली, राणी चितीताम | वैद्य जीवाडि राजनि, रानी द्वारा विलाप तु मो विर्णसि काम ।। १६५ ।। इम चीती हाहा करी, छोडिय केश कलाप । मूरछ मसि उपरि पड़ी, हीयउलि आणीय पाप ॥ १६६ ॥ तुझ दिण राणा राजला, आंगुलडीय देलाडि । निरधारी तु कां करि, कांइन करइ संभालि ।। १६७ ।। रखमसि उधर पड़ी, गलई अंगूठउ देह | चांगयि कंद सोहामणु, प्राण रहित कीषां देहु ।। १६८ ।। राजा का दाह संस्कार करना राय राणा तव सहू मिल्या मांडीय एक पोकार | माई यसोधर बिहूनि चंदन देउ संस्कार ॥ १६६ ॥ गाइ भूम सोनु देइ, मिलीया सत्रि परवान । ब्राह्मण सवि तेडी करी, अति घणु दोघो लु दान ॥ २०० ॥ यशोमति द्वारा राजा बनाना राय राणे संघर्षे मिली, कुमार बिठास्यु पाट | राज घसोमति थापीठ, जय जय बोलि छ भार || २०१ ॥ वस्तु तेह राजन तेह राजन पाप भरि भावि 1 जे जे दुःख वसीम सहां, जोड़ा परिभव सहीउ । जिम जिम जिहां जिहां उपनो, जिसी २ गति दुःख भलीया । जिरी जिणी परि परि भव्य पीठी कूकड काजि ते ते सविहं तुझ कहूं संभलि तु महराज ॥ २०२ ।।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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