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आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर
कुटकुतवमि चाखोउ, जांण व विनाए । तिगृह विषि हुषारीउ, राखी को लोगो न कारण ।। १३३ ।। far धारया धरणी पडयु हूउ एक पोकार 1
पड तिमि त इय भव्यु
विष तया वैद ह्कार ।। १६४ ।।
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मुझ वाणी जब सांभली, राणी चितीताम |
वैद्य जीवाडि राजनि,
रानी द्वारा विलाप
तु मो विर्णसि काम ।। १६५ ।।
इम चीती हाहा करी, छोडिय केश कलाप ।
मूरछ मसि उपरि पड़ी, हीयउलि आणीय पाप ॥ १६६ ॥ तुझ दिण राणा राजला, आंगुलडीय देलाडि ।
निरधारी तु कां करि, कांइन करइ संभालि ।। १६७ ।।
रखमसि उधर पड़ी, गलई अंगूठउ देह |
चांगयि कंद सोहामणु, प्राण रहित कीषां देहु ।। १६८ ।।
राजा का दाह संस्कार करना
राय राणा तव सहू मिल्या मांडीय एक पोकार | माई यसोधर बिहूनि चंदन देउ संस्कार ॥ १६६ ॥ गाइ भूम सोनु देइ, मिलीया सत्रि परवान ।
ब्राह्मण सवि तेडी करी, अति घणु दोघो लु दान ॥ २०० ॥ यशोमति द्वारा राजा बनाना
राय राणे संघर्षे मिली, कुमार बिठास्यु पाट |
राज घसोमति थापीठ, जय जय बोलि छ भार || २०१ ॥
वस्तु
तेह राजन तेह राजन
पाप भरि भावि 1
जे जे दुःख वसीम सहां,
जोड़ा परिभव सहीउ ।
जिम जिम जिहां जिहां उपनो, जिसी २ गति दुःख भलीया । जिरी जिणी परि परि भव्य पीठी कूकड काजि
ते ते सविहं तुझ कहूं
संभलि तु महराज ॥ २०२ ।।