SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40 आचाय सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर राजरिधि सघसी कोई छांडी। बालपरिण दीक्षाकाइ मांडी। एबहुँ साहस कोइ की ए ॥४॥ अथवा एवडी कोइ विमासरण । बिसारी सनमुख बली भासरिए । ग रामी म सह ए !|४|| राजा बलिक साहामु जोव । पाप बुधि सवली ते धोइ । विनि करीनि पूछी ए ॥५ कवण कुल ले तो भक्तरीयो । सूरज जिमि तेजि परिवरियां । कुरिण कारणि दीक्षा लेइ ए ॥५१॥ जे कारण कि मनमाहि मोरा । सम देई हुई गुरु तोरा । जु तुम्हे कोई उलए ॥५२|| अस्सक द्वारा उत्तर देना पुल्लक दलतु इम वोलि । जाणे सुरगुरु केरि तोलि । काई करू महा पूछीहए ॥ ५३ पाप बुधि छि राजन तोरी । धर्म का छि निश्चल मोरी। तु प्रापण किम मलिए ॥ ५४ पेह विमास्युछि निज चित्त । तेति जाण्यु छह पुरण तत्त्वे । हवि विमासगामी करिए ॥ ५५ षडग कोश तव धरु राई । इष्ट ठवी छि पसिक पाइ । कर जोडी ए सुंगिए ।। ५६ कह स्वामि तल तरणएं परित्त । सहू सांभलमो एकि चित्त । कोलाहल को मां काला ॥ ५० लोक सवेनि जोगी नाम । देवी पुण चित्त कीधु ठाम। ब्रह्मचार तब इम भरिगए ।। ५८ पुण्य तथा सहूइ सांभलयो । पाप वात माहि छि टखयो । सवि सुख पामउ तु सहए ॥ ५६ 1, मूल पाठ-ब्रह्माधार
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy