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ब्रह्म गुणकीर्ति
२१ भट्टारक यश कीर्ति २२ ब्रह्म यशोवर
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१६वीं शताब्दी
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२६
पञ्चम
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इस प्रकार १६वीं एवं १७वीं शताब्दी के २२ प्रतिनिधि कवियों का मूल्या न एवं उनकी छोटी-बड़ी १६० कृतियो का प्रकाशन एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसके लिए अकादमी के निदेशक एवं प्रधान सम्पादक डॉ० कासलीवाल अभिनन्दनीय हैं। वास्तव में डॉ० कासलीवाल का यही प्रयत्न रहा है कि अज्ञात कोनों में से प्राचीन सागग्री एवं परम्पराओं का सवेंरण कर उन्हें प्रकाश में लायें । प्रस्तुत ग्रन्थ भी उनकी इसी शुभवृति का सुफल है। प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक एवं प्रधान सम्पा दक भी डॉ. कासलीवाल ही हैं। वैसे तो वे गत ३५ वर्षों से साहित्यिक कार्यों में संलग्न हैं लेकिन गत ४ वर्षो से तो उनका पूरा समय ही साहित्य देवता के लिए समर्पित है ।
पंचम भाग के सम्पादक मण्डल के सदस्यों में डॉ० महेंद्रसागर प्रचंडिया प्रालीगढ़, श्री नाथूलाल जैन, मुख्य अधिवक्ता राजस्थान सरकार, जयपुर एवं श्रीमती डॉ० कोकिला सेठी है। तीनों ही विद्वानों ने प्रस्तुत ग्रंथ के सम्पादन में जो परिश्रम किया है उसके लिए हम इनके आभारी हैं। आशा है प्रकादमी को सभी विद्वानों का भविष्य में भी सहयोग प्राप्त होता रहेगा ।
अकादमी की लोकप्रियता में निरन्तर वृद्धि हो रही है। चतुर्थ भाग का विमोचन पूज्य क्षुल्लक रत्न १०५ श्री सिद्धसागर जी महाराज द्वारा भागलपुर में इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पर हुआ था और उन्हीं की प्रेरणा से विमोचन समारोह में मैंने स्वयं ने देखा था कि, उपस्थित समाज ने अकादमी को साहित्यिक योजना में अपना पूर्ण सहयोग देने में प्रसन्नता प्रकट की थी। चतुर्थ भाग के प्रकाशन के पश्चात् श्र. मा. दि. जैन महासभा के उत्साही अध्यक्ष एवं धावक रत्न श्री निर्मलकुमार जी सेठी, सरिया लखनऊ (बिहार) के प्रसिद्ध समाज सेवी श्री महावीर प्रसाद जी सेठी एवं जयपुर के उद्योगपति श्री कमलचन्द जी कासलीवाल ने अकादमी का संरक्षक सदस्य बनने की प्रतिकृपा की है उसके लिए हम तीनों ही महानुभावों के आभारी है। इसी तरह मूड बद्री के भट्टारक एवं पण्डिताचार्य स्वस्ति श्री पाहवीति जी महाराज ने अकादमी का परम संरक्षक बनने की स्वीकृति दी है। भट्टारक जी महाराज स्वयं साहित्य-प्रेमी, अच्छे वक्ता एवं लेखक है। प्रकादमी को आपके द्वारा जो संरक्षण प्राप्त हुआ है हम उसके लिये पूर्णाभारी हैं। वैसे भकादमी के पाँचों ही प्रकाशन मध्य काल में होने वाले भट्टारकों एवं उनके शिष्य प्रशिष्यों की प्रभूतपूर्व सहत्यिक सेवा के