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कर्मों की गति
बलिभद्र चुपई
केशव विलषु इस भाणि मुझ पावउ नीर रे । नीरनि वीरा वेगी पाइए । १०५ ॥ वचन मनोहर उच्चरी सुणु माघव वीर रे ।
नीर हो प्राणु घडतलिवीसमु ए ।। १०६ ।
दहा
नीरज लेवा संचर, मनन मेहिल मारा ।
सुड करि सुतु सही, बड़ तलि सारंग पास ॥ १०७ ॥
पई
जरा कुमार जे धागि का, बार चरसि पहिले वर्ति गयउ । लक्षु निलाङ विधाता जेह, तिरिए पनि कुमर पहूतु तेह ||१०|| कृष्ण पाइ तब पद्मज दीठ, जाणे कोइ वनेचर बैठ ।
प्राणि लक्षु ते करि सुजाण, वरीय धनुष तव पंच्यु बारा ।। १०६ ॥ करीय रोसनि मत्रयं जाम, लाग्यू पनि मनि चमक्यु ताम । जाग्यु कृष्णा ते हा हा करी, उपरि कुमर गज संचारी ।। ११० ।। घरि दुःख मार्ग कुटि होउ, विग् धिग् देव लिएसु कोउ । पाप तिमर करो हूँ उहूँ अंध, करयुं कुक्रम्मं मिहणीय बंधु ॥ १११ ॥ कहि कृष्ण सुणि जरा कुमार, मूढपाणि मम बोलिसमार ।
संसारतरणी गति विषमी हो, हायडा मांहि बिचारी जोइ ।। ११२ ।। करमि रामचन्द्र वनि गज, करमि सीता हरण ज भ ।
करमि रावण राजजटली करोमि लंक विभीषरण फली ।। ११३ ॥ हरचंदे राजा साहस घीर, करमि प्रथम घरि प्राप्यु नीर । करमिनल नर चुकु राज, दमयंती वनि कोषी त्याज ॥ ११४ ॥ राय युजिष्टर वाचा सार सूरवीर र चढ़ि कार । द्यूतक्रीडा से करमि करी, करमि भवनी कौरव हरी ।। ११५ ।। करमि ऋषि वृधि पामि बहु, एके निरघन करमि सहू ।
करम करि से निश्चि होइ, करम कारण नवि छूटि कोइ ॥ ११६ ॥ उ छ मत लाख षेव, जब लगि नावि बलभद्र देव | कौस्तुभ मणि भाली समझाइ, दक्षण मथुरां बेगु भाइ ॥ ११७ ॥
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