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ब्रह्म योगधर
नवखणु रथ सोवण मिरे, रयण मंडित सुविसाल 1
हांसला अश्व जिणि जोत रे, लह लहधिजाय श्रपार ।। ५१ ।। कानेव कुंडल तपतप रे, मस्तिक छत्र सोहति ।
सामला वरण सोहाम जुरे, सोइ राजिल तो कंत ॥ ५२ ॥
इस प्रकार रचना में घटनाओं का श्रच्छा वर्णन किया गया है । अन्त में कवि ने अपने गुरु को स्मरण करते हुए रचना की समाप्ति की है ।
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श्री मनकीति सुताउति
यशोधर भलिवार
चरण न छोडउ स्वामी तला, मुझ भयका दुःख निवार || ६ || असि जितेसर सभिल,
प्रवतार
नव निधि तस घरि उपजि रे, ते तरसि रे संसार || ६६ ।।
भाषा - गीत की भाषा राजस्थानी है । कुछ शब्दों का प्रयोग देखिये -
मासु गाऊंगा ( १ ) कांई करू-क्या करू (१ नोक्त्या रे निकला (३) तहम श्रह्म (5) तिहां (२१) नजर (४३) मावा (५३) तोरू (तुम्हारा) मोरू (मेरा) (५०) उतावलु (१३) पाठवी (२२)
नन्द- सम्पूर्ण गोल गुडी (गोडी) राग में निबद्ध है ।
5. मल्लिनाथ गीत
के रूप
डूंगरपुर स्थित दि. जैन मन्दिर में मल्लिनाथ स्वामी की प्रतिमा के स्तवन मै प्रस्तुत गीत लिखा गया है। इसमें उनके पंच कल्याणकों की महिमा का वर्णन किया गया है। गीत में अन्तरे हैं। अन्तिम पाठ निम्न प्रकार है
ब्रह्म यशोधरनिवि हृवि तहम तणुदास रे
मिरिपुर स्वामीय मंड़णु श्री संघ पुरात्रि घाम रे ॥४॥
६. पव साहित्य
ब्रह्मोवर ने अब तक १८ पद मिल कुके हैं जो विभिन्न राग-रागनियों में निबद्ध है । कवि ने अधिकांश पदों में नेमि राजुन का वशन किया है। कहीं राजुल को विरह-वेदना है तो किसी में तोरगृह द्वार से लौटने की घटना पर क्षोभ प्रगट किया गया है। ऐसा लगता है कि ब्रह्म यशोधर भी भट्टारक रत्न कोनि गर्भ कुमदचन्द्र के समान नेमि राजुल कथानक से अत्यधिक प्रभावित थे और उनके विविध रूप पाठकों के सामने रखना चाहते थे। कुछ पदों में भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति की गयी है । एक पद अपने गुरु यशःकीति की प्रशंसा में लिखा गया है ।