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________________ T १७४ प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर बनायी गई । कवि ने जिन व्यजनों के नाम गिनाये हैं उनमें अधिकांश राजस्थानी मिष्ठान हैं कवि के शब्दों में इसका प्रास्वादन कीजिये पकवान नीजि नित नवां रे, मांडी मुरकी क्षेत्र । खाजा, खाजडली दी भरां रे फेवर घेवर हेव ।। २५ ।। मोतीया लाडू रंग लगा रे, सेवइया प्रतिसार । काकरी पापड सूषीयारे, साकरि मिश्रित सार ।। २६ ।। सालीया तंदुल रूपडारे, उज्जल प्रखंड अपार । प्रखंडी धार ।। २७ ।। मूंग महोरा प्रति भला रे, घृत राजुल का सौन्दर्य अवर्णनीय था। पांवों के नुपुर मधुर शब्द कर रहे थे वे एसे लगते थे मानों नेमिनाथ को ही बुला रहे हों । कटि पर सुशोभित 'कनकती' चमक रही थी । अंगुलियों में रत्नजटित अंगूठी, हाथों में रत्नों की ही चूडियां तथा गले में नवलख हार सुशोभित था । कानों में भूमके लटक रहे थे । नयन कजरारे थे। हीरों से जड़ी हुई ललाट पर खड़ी (बोरला ) चमक रही थी। इसकी वेणी दण्ड उतार (उपर से मोटी तथा नीचे से पतली ) यो इन सब माभूषणों से वह ऐसी लगती थी कि मानों कहीं कामदेव के धनुष को तोड़ने जा रही हो— पायेय नेउर रणमिरे, घूघरी नु घमकार | कटियंत्र सोहि रुटी मेखला रे भ्रमणु झलक सार ||४३|| रत्नजड़ित रूड़ी मुद्रकारे, करियल चूड़ीतार । बाहि विटा रूड़ा बहिरखारे, होयडोलि नवलबहार ॥ ४४ ॥ ॥ कोटीय टोडर रूयड्डु रे श्रवणे भबकि झाल नल विट टीलु तप तपि रे, खीटलि खटक चाईल ॥१४५॥ चांकीम भरि सोहामणी रे, नयले काजल रेह 1 कामिधेनु जाणु तोडीउरे, नर मन पाड़वा एह ।। ४६ ।। हीरे जड़ी रूड़ी राखड़ी, वेणी दंड उतार | म पन्नग जाणे पासीउरे, गोफणु लहि किसार ||४७।। नेमकुमार खरण के रथ में विराजमान थे जो रत्न जड़ित था तथा जिसमें हाँसना जाति के घोड़े जुते हुये थे । नेमिकुमार के कानों में कुण्डल एवं मस्तक पर छत्र सुशोभित थे । वे श्याम वर्ण के थे तथा राजुल की सहेलियां उनकी ओर संकेत करके कह रही थी यही उसके पति हैं ?
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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