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________________ आचार्ग सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर १७ में भट्टारक थे। उनका पट्टाभिषेक गुजरात के सौजित्रा नगर में शांतिनाथ के मन्दिर में हुमाया। महारोगोनित्रामा निकरते हुए लिखा है-- श्रीगजरे पस्ति पुरं प्रसिद्ध सोजिन नमामिधमेक्सारं । सौजित्रा जैनधर्म एवं संस्कृति का केन्द्र पा तया काष्ठा संब के भट्टारकों की यहां मादी भी। सोमकीर्ति संबर १५१८ से प्रकाश में पाये और अपने अन्तिम जीवन तक समाज के जगमाते नक्षत्र रहे। श्री जोहरापुरकर ने अपने भट्टारक सम्प्रदाय में इनका समय संवत् १५२६ से १५४० तक दिया है जो इस पावली से मेल नहीं खाता। संभवतः चन्होंने यह समय इनकी संस्कृत रचना सप्तव्यसनकथा के आधार पर दिया मालुम देता है क्योंकि कवि ने इसे संवत् १५२६ में समाप्त की थी। सीमकीति ने भारक गादी पर बैठते ही गजरात एवं राजस्थान के विभिन्न भागों में बिहार किया तथा जन-जन से सम्पर्क करके उन्हें अहिंसा धर्म के परिपालन पर जोर दिया। उस समय देहली पर लोदी वंश का राज्य या । बहलोल लोदी दिल्ली का सुलतान था। ये मुस्लिम शासक इतने धर्मान्ध एवं प्रसहिष्ण थे कि उन्हें मन्दिरों, मृतियों एवं ग्रन्थों के विस्वन्स के प्रतिरिक्त कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। हिन्दुओं एवं जनों में इतना भय व्याप्त था कि उन्हें प्रर्हद् भक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखता था ! भद्रारक उनके संरक्षक थे जिनका सम्बन्ध इन बादशाहों से भी अच्छा था । भट्टारक सोमकीति के लिये ब्रह्म श्रीकृष्णदास ने लिखा है कि के “यवनपतिकरांभोज संपूजिलाधि थे अर्थात् भट्टारक सोमकीति का पवन बादशाह भी सम्मान करते थे । इससे सोमकीर्ति के प्रभाव एवं यम में और भी वृद्धि हो गई। पहिले सन्त फिर प्रकाण्ड विद्वान, वक्ता और फिर बादशाह पर हाथ । वे तो सर्वगुण सम्पन्न हो गये । वे अत्यधिक प्रभावशाली थे । उहा विहार होता वहीं उनके भक्त बन जाते । साहित्य रचना वे स्वयं करते और समाज से बत विधान एवं प्रतिष्ठा विधान कराते । राजस्थान के मन्दिरों में उनके द्वारा प्रतिष्ठित पचासों मूर्तियां मिलती हैं । मूलसंत्र के क्षेत्र में काष्ठासंघ का इतना जबरदस्त प्रभाव उनके स्वयं के व्यक्तित्व का सुपरिणाम था । १. पनरहसिमठार मास पाषाढह जाणु अक्कवार पंचमी बहुल पक्ष्यह परवाणु । पुवामद्द नक्षत्र श्री सोझीत्री पुरवरि सन्यासी पर पाट तणु प्रबन्ध जिणि परि ।।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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