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श्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
चुमासु तिहां लघु, धरम ध्यान निरमल कीधु । दीपक ति क्लो नीमनुए। सहीए ॥ १६ ॥ ६ ॥
सप्तम वाल भास तोन वीसीनी
रामरायां रंग भरि भरि वीर, लक्षम बांधव धोर
सुगाउ वचन मुझ सार ॥ १ ॥
एह वन माहि रह्या सुजाण,
हो नहीं भरतती प्राण जाली कर विचार ॥ २ ॥ नगर एक इहां नीपजाबु भूमि,
सकुन निमस पारणी तुम्हें कीजि काज अमूल ॥ ३ ॥ नगर एक इहां नीपजाबु,
ऊबऊ लक्षमण वार मलाबु लुभाको मनि रंग ॥ ४ ॥ पछि प्रारवा तु जाए, कौसल्या सुमित्रा माए ।
राज सूरजवंसि कीजिए ॥ ५ ॥१
रामायण सुश्या तव सार, लक्षमण उठयु सिहां सुविचार |
धनुष बाण करि लीघु ॥ ६ ॥
भूमि जोवा सक्षमण चंग, हैयउ उतर मनि रंग | गरभय जैसु सिंघ 11 ७ ॥
एफलमस ही वनमाहि निरमल जल सूरी चाहि ।
वाहि परिमल पुर । ८ ॥
परिमल लागु लक्षमरण चालि, मयमत्त मयगलती परिमाति ।
बोलि प्रतिकुल बंग ।।६।।
भागलि आत तेज प्रकास्यो, चार दिनकर जिम संकाय ।
भासि सूरज हास ॥ १० ॥
झगमग रोज वह दिणिदीपि, नूरजहास षडग र जोपि । प्रमृता । ११ ॥
एक छह लानु गयंगरण, मुष्टि भावी अधस्तल रंगन्ति ।
लक्षमण वांल्यु हाथ ।। १२ ।।
लक्षमण देव षडग करेसाहरष वदन हवो रमायो ।