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________________ १४२ श्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर चुमासु तिहां लघु, धरम ध्यान निरमल कीधु । दीपक ति क्लो नीमनुए। सहीए ॥ १६ ॥ ६ ॥ सप्तम वाल भास तोन वीसीनी रामरायां रंग भरि भरि वीर, लक्षम बांधव धोर सुगाउ वचन मुझ सार ॥ १ ॥ एह वन माहि रह्या सुजाण, हो नहीं भरतती प्राण जाली कर विचार ॥ २ ॥ नगर एक इहां नीपजाबु भूमि, सकुन निमस पारणी तुम्हें कीजि काज अमूल ॥ ३ ॥ नगर एक इहां नीपजाबु, ऊबऊ लक्षमण वार मलाबु लुभाको मनि रंग ॥ ४ ॥ पछि प्रारवा तु जाए, कौसल्या सुमित्रा माए । राज सूरजवंसि कीजिए ॥ ५ ॥१ रामायण सुश्या तव सार, लक्षमण उठयु सिहां सुविचार | धनुष बाण करि लीघु ॥ ६ ॥ भूमि जोवा सक्षमण चंग, हैयउ उतर मनि रंग | गरभय जैसु सिंघ 11 ७ ॥ एफलमस ही वनमाहि निरमल जल सूरी चाहि । वाहि परिमल पुर । ८ ॥ परिमल लागु लक्षमरण चालि, मयमत्त मयगलती परिमाति । बोलि प्रतिकुल बंग ।।६।। भागलि आत तेज प्रकास्यो, चार दिनकर जिम संकाय । भासि सूरज हास ॥ १० ॥ झगमग रोज वह दिणिदीपि, नूरजहास षडग र जोपि । प्रमृता । ११ ॥ एक छह लानु गयंगरण, मुष्टि भावी अधस्तल रंगन्ति । लक्षमण वांल्यु हाथ ।। १२ ।। लक्षमण देव षडग करेसाहरष वदन हवो रमायो ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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