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दशरथ का उत्तर
आचाय सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर
दया करुनि नाथ संयम भावना परिहरु || नवि तप लीजि राज कीजि सौख्य भोगवु प्रतिघणां । च्यारि राणी व्यार पुत्र समल बहूबर तेह तां । सुकमाल कोमल अङ्गरंगिहि समन प्रसन पालीउ । पच इन्द्रीय विषय सयल ते प्रष्ट भोग मन लानीउ || ३२॥ लालीइ मन अति योर सलिधि किमवि स
दीक्षा दुरधर जाणि षडग घार से इस जोउ ।। सग धारा उपरि चालि अज्जन भरी छिउ वरीऊ । जल वस्त्र मांहि पयसी कवण नीसरि ष हरी । मयमतमय गलकानि साहु किम मलपतु भावए । दीप्यमान कि अग्नि ज्वाला सांइ देवा को भा भावी मिल मिदांत कमरा चाबि लोहमि चणा ॥ मेरकरांगलि तोलि तिम चारिवह भार घर चारित्र भारते भावि दोहिल पंच महाव्रत पालतां । खमि पाणी भात परिवरि दोहिल मोह ढालतां । वीरविण अंग स्वामी दंशमशक बि घणा । भूमिसयन बाजीस गरीब कष्ट सहिमु किम तरा || ६ | वण० ।।
कष्टसाध्य तप जानिश सुरण नारि ।
तप बिना मुगति हि नहीं ॥
हवि तप तपसु जप जयसु कर्म्म पपिसु प्रति त्रणा ॥ संसार सागर जन्म मराह दुःख टालिसु जगतां ॥ वपन घन योवन्न जातीय सकल कुटम्ब ते कारिमु । जिनवाणीच जाणीव मयल सम्पत्ति छांडीय
तप धारि ॥ १० ॥ १०२॥ नारि केमामती जागि कंस वयण सुररात्रि करी | रूदन करिए अपार मनमाहि कपट माया धरी । कपट माया ववरण बोलि स्वामी संयम लेईयो । अझ तो संतरि प्रसन होया तेवर ब्रह्म देययो ।