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ब्रह्म गुणकीदि राम पूछि कहु न सुग्रीव लंका कवरण दिशाई बसि ।
सुग्रीव तरणो मम वाणी राम तणी सुग्ग विहसि ।।१४।। इसके पश्चात् राम ने सुग्रीव की सहायता से युद्ध की बड़ी तैयारी की। सर्व प्रथम हनुमान को अपनी मुद्रिका देकर लंका भेजा और उसमें अभूतपूर्व सफलता लाने के कमला राम ने माना किया।
रामचंद्र दीउ मान धन धन जनम बन तम्ह पिता 1
पनि जननी कवि भानु । सा० । रामचंद्र दीउ मान ।। लंका में अपनी पूरी सेना उतारने के बाद भी राम ने रावण से सीता को गपिस लौटाने का प्रस्ताव किया ।
सीता दीजि प्रीति कीजि राम राज भाषीइ । अन्त में राम रावण के मध्य घमासान युद्ध हुप्रा । सवरण में पक चलाया जो लक्ष्मण के हाथ में आया । वही चक्र लक्ष्मण द्वारा चलाया गया जिससे रावण का अन्त हुआ।
युद्ध में विजय के पश्चात् लंका में चारों ग्रोर राम की जय जयकार होने , लगी। मंगल गीत गामे जाने लगे। गरीबों को खूब दान दिया गया । चारों ओर स्वर्स ही मानों बरसने लगा । इतने में ही नारद ऋषि ने प्राकर राम से माता के दुःख एवं पुत्र वियोग का वृतान्त कहा 1 नारद की बात सुनकर तत्काल प्रयोध्या जाने का निर्याय लिया गया । और पूरे दल के साथ राम लक्ष्मण एवं सीता यहाँ से चल पड़े । राम की सेना अस का कवि ने निम्न प्रकार वर्णन किया है
नव कोडी तोरंगमा तु पाघदल कोडि पंचास तु, रथ लक्ष बयालीस तु, गज तेतला गुण रास तु । सोल सहस मूगट बंध तु, सेवा करि राम पाय तू।
लच्छ तशी संख्या नहीं तु विभीषण प्रागिल जाइ नु । राम ने सपरिवार अयोध्या में प्रवेश किया। उस समय अयोध्या को खुद सजाया गया चारों प्रोर तोरण द्वार बनाये गये । बाजे बजने लगे तथा जय जयकार के नारों से प्राकाश गूज उठा । कवि ने नगर प्रवेश एवं आगे राज्याभिषेक का प्रच्छा बर्णन किया है ।
बाजि हुंदुभि नाद सु, साद सोहामणाए । मदन भेरीय झणकार तु, डोल नीसा घणाए ।