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________________ १२४ आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर गाया। पंड़ितों ने लगन पढ़ा तथा शुभ बेला में विवाह सम्पन्न हुमा । हथलेवा हुश्रा | चारों ओर जय जयकार के मध्य राम और सीता का विवाह सम्पन्न हुआ । विदेहा प्रक्षाणु लघु, सासू वर खणु कीषु । वर चवरी भाहि श्राव्या साहासीय बषाव्या । पंडित बोलए मंत्र, लगन तथा प्राण्या मंत्र । सुभ बेला तिहा जोड, वरति मंगल सोई ।।६।। अब योग सघलुङ भागु, सुलगन हथोलू लागु । सब उ जय जयकार, परणीय यानकी नार ||७|| राम के विवाह के पश्चात् लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न इन तीनों भाइयों का भी सुन्दर कन्याओं से विवाह हो गया । वे सब मथुरा से अयोध्या लौट आये और राज्य सुख भोगने लगे। कुछ समय पश्चात् दशरथ ने वैराग्य लेने का विचार किया। उन्होंने अपने इस विचार को सभी को बता दिया। मन्त्री परिषद् की मीटिंग बुलाकर राम को राज्य तिलक देने की घोषणा कर दी। दशरथ की इस घोषणा से चारों और प्रसन्नता छा गयी। लेकिन भरत की माता केगामती को राम का राजा बनना अच्छा नहीं लगा। उसे चिन्ता हुई कि राम के राजा बनते ही भरत को उनकी प्राज्ञा माननी पड़ेगी । पहिले तो उसने भी दीक्षा लेने की सोची लेकिन बाद में भरत के प्रति मोह के कारण उसने अपना विचार बदल दिया । और राज्य सभा में जाकर दीक्षा लेने के पहिले दिये हुए दो वचनों की पूर्ति करने के लिये वशरभ से कहा । घणुयन मागु देव भरत नरेसर थायो । दिउ मुझ पुत्रनि राज, तो स्वामी संयम लीयो ॥ १२॥ जब दशरथ ने केगामती के प्रस्ताव सुने तो तत्काल भरत को राज्य देने का निश्चय किया गया। वैराग्य लेने के पूर्व सांसारिक ऋणों से मुक्ति पाना श्रावश्यक माना जाता है क्योंकि जिसके कर्ज होता है उसे दीक्षा नहीं दी जाती वाचारण पिता तणुं पुत्र उतारि दस जाणी । गामती का पुत्र भरत राज देवा भाखीइ । राम स्वामी मुगति गामी पिता भाव ते जाणीज । भरत कुमरहबांह साही रामि राज सभा माहि श्राणी 11
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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