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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
मोतियों की बादरवाल लटकापी गयी । सोने के कलश रखे गये। गंधर्व एवं किर जाति के देवों ने गीत गाये । सुन्दर स्त्रियों में समाना लिस: 1 सारण द्वार पर माने पर खूब नाच गान किये गये। सास ने द्वारा प्रेक्षण किया। जब चंवरी के मध्य पाये तो सौभाग्यवती स्त्रियों ने बधाचा गाया। लग्न वेला में पंडितों ने मंत्र पढ़े। हधने वा किया गया । खूब दान दिया गया ।
उस समय वृद्धावस्था पाते ही प्रथबा अपनी सन्तान का विवाह होने के पश्चात् संयम लेने की प्रथा थी। संयम लेने के लिये सभी प्रकार के सांसारिक ऋणों से मुक्ति ली जाती थी । कर्ज चुकाया जाता था। दशरथ को भी अपने दिये हुये वचनों की निभाने के लिये कगामती की दोनों बातों को मानना पड़ा।
नगरों का उल्लेख-राम लक्ष्मण एवं सीता जिस मार्ग से दक्षिण में पहुंचे घे उसी प्रसंग में कवि ने कुछ नगरों का नामोल्लेस्त्र किया है। ऐसे नगरों में चित्तुङगढ़ (चित्तौड) नालछिपाटण, अरुणग्राम, बंशयल के नाम उल्लेखनीय है।
वगन की पुष्टि से अध्ययन-कवि ने रामकथा की लोकप्रियता, जनमामान्य में उसके प्रति सहज अनुराग, एवं अपनी काध्य प्रतिभा को प्रस्तुत करने के लिये रामसीतारास की रचना की थी। महाकवि तुलसी के सैकड़ों वर्ष पूर्व जैन कवियों ने रामकथा पर जिस प्रकार प्रबन्ध काव्य एवं खण्ड काव्य लिसे यह मच उनकी विशेषता है। जैन समाज में रामकथा की जितनी लोकप्रियता रही उसमें महाऋदि स्वयम्भु, पुष्पदन्त एवं रविषेणाचार्य का प्रमुख योगदान रहा है। सुलसी ने जब रामायण लिखी थी उसके पहिले ही जैन कवियों ने छोटे-बड़े बीसों राम काव्य अथवा रास लिख दिये थे। अस गुणकीति का रामकाव्य भी इसी श्रेणी का है जिसका संक्षिप्त अध्ययन निम्न प्रकार है
काभ्य का प्रारम्भ--कवि ने सर्व प्रथम जिन स्तुति की है जो ऋपभदेव से लेकर मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकर स्तवन के साथ समाप्त होती है। दसरथ साकेता नगरी के राजा थे अपराजिता उनकी महारानी थी। इसके अतिरिक्त मुमित्रा, सुभमती एवं केगामती ये तीन और रानियां थी चारों रानियों के एकनाक पुष हय जो राम, लक्ष्मण, शत्रुधन एवं भरत कहलाये। जनक मथुरा के राजा थे। विदेहा उसकी रानी थी। सीता उसकी पुत्री थी जिसको वैदेही भी कहा जाता था। सीता बहुत सुन्दर थी । कवि ने उनकी सुन्दरता का निम्न प्रकार वर्णन किया है--
ते गुणह ग्राम मन्दिर काम रूपधाम रसातली । कद्रवदना मृगह नयना सधन धन तन पाताली ।