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________________ प्राचार्य सोमकीति एवं ग्रह्म यशोधर मगि चिह्न दोठु ते तरिण, चित चमकी मानि प्रापणी । खोलि लेई देती पम पान, तिणि अवसरि से प्राबी सानि ।। ।। १५ ।। ढाल बराजारामी मुनि द्वारा व्यानिणी को उददेश सहि गुरु बोल्या ते बार एव प्रखत्र काइ श्रादरयु घेतहईडलारेन कसमल भरयु रे भंगार । ग्राज सकोसस बध करयु रे । चेतह । ।। १५६॥ पूरक प्रीति संभारए ताहरी कृषि जो अबतरयु । अक्तयु कूस्थि, रुहिर सोलि मिह पोखितुतणु । ।। १५७ ॥ संसारि सगरण कोई न जाणि पुत्र ए परिभा तमु । रीस गाही प्रारण काडी व घग्य वाघिण तणु । ॥ १५ ॥ सिहि गुरु बोल्या तिवारि ए बडु असत्र कांइ प्रादरम् ।। माविण करि रे बिलाप पूरव भव मनि चौतवि ।। . ।। १५६ ॥ मोह घरयु मन माहि ढोर तणी परि वाइहि ।। के । ढाढहि ढोरज तणी पिरि दुःख संभारि प्रति घणु।। सीस कूटि जीभ त्रुटि उदर फाडि आपणु । ॥ १६० ॥ परजल्यु पंजर रोस पूरीहोइ दुख सालि सवि । वापस कर रे विलाप पूरव भव मनि चीतवि ॥ चेत. ॥ २ ॥ ११ ॥ सहि गुरुदेइ प्रतिबोध प्राप हुत्पा जीव मां करे ।। कीयां छि करम कठोर, बलीरे ना कोई प्रावरि ॥ लागी छि सहि गुरु पाय, मुनिवर वाणी मनि धरि ।। व्याध्रिणी द्वारा पश्चाताप एवं अनघाम लेना सांभलीय मुनिवर तणीय वाणी रोट्र भारत परिहरि । कोष टाली क्षति पाणी भाव हीयहा सुधरी। परणसण लीघुफाज सीधु देवलोक ज अवतरी। सहि गुरुवेइ प्रतिबोध पाप हत्या जीव मां करे ॥ ३ ॥ १६४ 1 काशग लेई निरधार मूनिवर वन माहि तप करि ।। अचल उमु जाणे मेर देहडी मि नित भाषणी ॥ १६५ । १६२ ॥
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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