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________________ १.४ - आचार्य हेमचन्द्र कुलोत्पन्न है तो महामात्य बनेगा और यदि कहीं इसने दीक्षा ग्रहण करली तो युग-प्रधान के समान अवश्य इस युग में कृतयुग की स्थापना करने वाला होगा' । चाङ्गदेव के सहज साहस, शरीर सौष्ठव, चेष्टा, प्रतिभा एवं भव्यता ने आचार्य के मन पर गहरा प्रभाव डाला और वे सानुराग उस बालक को प्राप्त करने की अभिलाषा से उस नगर के व्यावहारिकों को साथ ले स्वयं चाचिग के निवास स्थान पर पधारे । उस समय चाचिग यात्रार्थ बाहर गये हुए थे। अतः उनकी अनुपस्थिति में उनकी विवेकवती पत्नी ने समुचित स्वागत-सत्कार द्वारा अतिथियों को सन्तुष्ट किया। आचार्य देवचन्द्र ने चाङ्गदेव को प्राप्त करने की अभिलाषा प्रकट को। आचार्य द्वारा पुत्रयाचना की बात जानकर पुत्र गौरव से अपनी आत्मा को गौरवान्वित समझ कर प्रज्ञावती हर्ष-विभोर हो अश्रुपात करने लगी। पाहिणी देवी ने आचार्य के प्रस्ताव का हृदय से स्वागत किया और वह अपने "अधिकार की सीमा का अवलोकन कर लाचारी प्रकट करती हुई बोली, “प्रभो ! सन्तान पर माता पिता दोनों का अधिकार होता है, गृहपति बाहर गये हुए हैं, वे मिथ्यादृष्टि भी हैं, अतः मैं अकेली इस पुत्र को कैसे दे सकूँगी ?" पाहिणी के इस कथन को सुनकर प्रतिष्ठत् सेठ साहूकारों ने उत्तर दिया। "तुम इसे अपने अधिकार से गुरुजी को दे दो। गृहपति के आने पर उनसे भी स्वीकृति ले ली जायगी" । पाहिणी ने उपस्थित जन-समुदाय का अनुरोध स्वीकार कर लिया और अपने पुत्ररत्न को आचार्य को सौंप दिया२ । आचार्य इस प्रभविष्णु पुत्र को प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक से पूछा 'वत्स ! तू हमारा शिष्य बनेगा' ? चाङ्गदेव ने उत्तर दिया 'जी हाँ अवश्य बनूंगा' । इस उत्तर से आचार्य अत्यधिक प्रसन्न हुए। उनके मन में यह आशंका बनी हुई थी कि चाचिग यात्रा से वापिस लौटने पर कहीं इसे छीन न लें। अतः वे उसे अपने साथ ले जाकर कर्णावती पहुँचे और वहाँ उदयन मन्त्री के पास उसे रख दिया । उदयन उस समय जैन संघ का सबसे बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था । अत: उसके १-सच अष्टवर्ष देश्यः....."विवेकिन्या स्वागतादिमिः परितोषितः । प्रबन्धचिन्तामणि-हेमसूरिचरित्रम् पृष्ठ ८३। धुन्धुक के चाचिग चाहिणी..."मात्रा स्वागतादिना श्री संघस्तोषित पुरातन प्रबन्ध सङग्रह हेमसूरि प्रबन्ध । २-केवलं पित्रोरनुज्ञां..."दीक्षां ललौ-प्रबन्धकोष हेमसूरिप्रबन्ध-१०
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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