SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रि आचार्य हेमचन्द्र प्राप्त हो गया है जो मैंने आपको दे दिया" । गुरूजी ने कहा कि इस स्वप्न का यह फल है कि तेरे एक चिन्तामणि-तुल्य पुत्र होगा, परन्तु गुरू को सौंप देने से वह सूरिराज होगा, गृहस्थ नहीं । इससे यह सिद्ध होता है कि आचार्य हेमचन्द्र अपनी मृत्यु के बारह वर्ष पश्चात् ही दैवी पुरुष बन गये जिनके विषय में अद्भुत किंवदन्तियाँ लोगों में प्रचलित हो गयीं थीं । स्वप्न के सम्बन्ध में अन्य ग्रन्थों में भी वर्णन मिलता है। 'प्रभावक चरित' के अनुसार भी पाहिणी ने गर्भावस्था में स्वप्न में देखा कि उसने चिन्तामणि रत्न अपने आध्यात्मिक परामर्शदाता गुरु को सौंप दिया । उसने यह स्वप्न साधु देवचन्द्राचार्य के सम्मुख कह सुनाया। साधु देवचन्द्र ने इस स्वप्न का विश्लेषण करते हुए कहा कि उसे एक ऐसा पुत्ररत्न प्राप्त होगा जो जैन-सिद्धान्त का सर्वत्र प्रचार एवं प्रसार करेगा । इस प्रकार हेमचन्द्र के जन्म के पूर्व ही उनकी भवितव्यता के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे थे। महापुरुष के जन्म के पूर्व इस प्रकार शुभ लक्षण प्रकट होने की परम्परा भारतवर्ष में रही है। माता पिता की ओर से उत्कृष्ट संस्कार जिसे प्राप्त हैं, वह सन्तान युगप्रवर्तक निकलती है । बाल्यकाल:-शिक्षा दीक्षा एवं आचार्यत्व । शिशु चाङ्गदेव बहुत होनहार था । गौतमबुद्ध के समान शैशवकाल से ही धर्म के अतिरिक्त किसी विषय में बालक चाङ्गदेव का मन नहीं रमता था। वह अपनी माता के साथ मन्दिर जाया करता था एवं प्रवचनों का श्रवण करता था। श्री सोमप्रभसूरि के अनुसार एक बार पूर्णतलगच्छ के देवचन्द्रसूरि विहार करते हुए धुन्धुका आये । वहाँ चाङ्गदेव तथा उसकी माता चाहिनी ( पाहिणी) ने देवचन्द्र के उपदेशों को ध्यान से सुना । उपदेशों से प्रभावित होकर वणिक कुमार चाङ्गदेव ने प्रार्थना की "भगवन् सुचारित्र रूपी जलयान द्वारा इस संसार समुद्र से पार लगाइये"। तब मामा नेमिनाग ने गुरु से चाङ्गदेव का परिचय कराया । बालक का साधु बनने का निश्चय हो गया था। गुरु देवचन्द्र ने भी दीक्षा के लिये चाङ्गदेव की मांग की, किन्तु वे पिता की आज्ञा अवश्य चाहते थे। १-कुमारपाल प्रतिबोधः,पृष्ठ ४७८ २-प्रभावक चरित,पृष्ठ २६८, श्लोक २७ से ४५ गा०, ओ०, सी० १९२० ३-जैन शासन पायोधि कौस्तुभ:-संभवी सुत । तवस्तवकृतोयस्य देवा अपि सुवृत्ततः ॥१६॥ प्रभावक् चरित-हेमसूरि प्रबन्ध ४-कुमारपाल प्रतिबोधः, गा० ओ० सी० १९४० । पृष्ठ २१-२२
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy