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________________ हेमचन्द्र की बहुमुखी प्रतिभा १९७ आचार्य हेमचन्द्र एक असामान्य सङ्ग्रहकर्ता थे। उनके साहित्य में तत्तद् विषयों के सम्बन्ध में तदवधि तक ज्ञात प्राय: सभी अन्य ग्रन्थों के उद्धरण प्राप्त होते हैं। सङ्ग्रहकर्तृत्व के सम्बन्ध में आचार्य हेमचन्द्र सचमुच अनुपमेय हैं । इस क्षेत्र में उनकी बराबरी करने वाला कोई अन्य साहित्यकार नहीं उपलब्ध होता। उनके प्रत्येक ग्रन्थ में अन्य लेखकों के उद्धरणों का विशाल सङग्रह होते हुए भी उनकी मौलिकता अक्षुण्ण रहती है। व्याकरण में तो उन्होंने अपना एक नया सम्प्रदाय ही चलाया । काव्य में भी काव्य, शास्त्र, तथा इतिहास इन तीनों को संयुक्त कर अपनी मौलिकता एवं श्रेष्ठता सिद्ध की है। इस ग्रन्थ में उल्लिखित ग्रन्थों के अतिरिक्त आचार्य हेमचन्द्र ने 'सप्तसंधान महाकाव्य' (७-७ कहानियों का एक ही काव्य) 'नाभयनेमि', 'द्विसंधान काव्य', 'द्रोपदी नाटक', 'हरिश्चन्द्र चम्पू', 'लघु अर्हन्नीति', इत्याद्रि ग्रन्थ लिखे थे, ऐसा कहा जाता है किन्तु ये ग्रन्थ अभीतक अनुपलब्ध हैं । 'सप्तसंधान 'महाकाव्य' के होने की पुष्टि श्री भगवतशरण उपाध्याय ने अपने 'विश्वसाहित्य की रूपरेखा' में भी की है । 'लघु अर्हन्नीति' का उल्लेख प्रो० ए० बी० कीथ ने । अपते संस्कृत साहित्य के इतिहास में किया है। श्री सोमेश्वर भट्ट ने 'कीर्ति कौमुदी' में आचार्य हेमचन्द्र के विषय में निम्नांकित प्रशस्ति की है: सदा हृदि वहेम श्री हेमसूरेः सरस्वतीम् । सुवत्या शब्दरत्नानि ताम्रपर्णी जितायया । कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र जैसे ज्ञान के अगाध सागर का पार पाना अत्यन्त दुष्कर है। यदि जिज्ञासुओं के लिये कार्य करने के लिये यह ग्रन्थ थोड़ा बहुत भी प्रेरणा देने में समर्थ होगा तो मैं अपने को कृतार्थ समझंगा। अन्त में श्रद्धा के पुष्प, भले ही वे सुवासिक, प्रफुल्लित न हों, अत्यन्त श्रद्धा से श्रद्धेय आचार्य जी के चरणों में समर्पित करता हूँ। यत्वदाप्तं गुरो वस्तु तदेदत्त समर्प्यते । त्वं चे प्रीतोऽसि साफल्यं सर्वथाऽस्य भविष्यति ॥
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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