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________________ आचार्य हेमचन्द्र प्रिय ने प्रवासार्थ जाते हुए जितने दिन बताये थे उन्हें गिनते-गिनते नख मेरी अंगुलियाँ नख से जीर्ण हो गयीं । १८२ जइ ससणे हि तो मुअह अह जीवइ मिन्नेह | रिहिं विपयोरेहि गइय घर्णाकं गज्जहि खलमेह ॥ ८-४-३६७ यदि वह मुझे प्यार करती है तो मर गई होगी, यदि जीवित है तो निःस्नेह होगी ! अरे खल मेघ ! दोनों ही तरह से वह सुन्दरी मैंने खो दी है - व्यर्थ क्यों गरजते हो ? महन्त हो वे दोसडा हेल्लि में झंख हि आल । देन्त हो हउं पर उब्वरिअ जुज्झन्त हो करवालु ॥८-४-३७६ हे सखि, मेरे प्रियतम में केवल दो दोष हैं, झूठ मत कहो । मैं बच रहती हूं और युद्ध करते हुए केवल तलवार ! भल्ला हुआ ज मारिआ बहिणि महारा कन्तु । लज्जेज्जं तु वयं सिअहु जइभग्गा घर एन्तु ।। ८-४-३५१ बहिन, अच्छा हुआ मेरा पति रणभूमि में मारा गया । यदि पराजित हो वह घर लौटता तो मैं अपनी सखियों के सामने लज्जित होती । दान देते हुए केवल अतः हम कह सकते हैं कि हेमचन्द्र का अपभ्रंश प्रतिमित (Standard ) अपभ्रंश है । शृङ्गारिक दोहों की परम्परा ' गाहा सत्तसई' से जोड़ी जाती है । जर्मन विद्वान् रिचर्ड पिशेल कहते हैं कि "हेमचन्द्र के दोहों को देखकर कुछ ऐसा लगता है कि वे किसी ऐसे सङ्ग्रह के लिये गये हैं जो सतसई के ढग का है । शृङ्गारिक दोहों में अधिकतर दोहे कवि- निबद्ध - वक्तृ प्रौढोक्ति के रुप में विद्य मान हैं कई दोहे रतिवृत्तिप्रधान होते हुए भी वीररसपूर्ण दिखाई पड़ते हैं । नायिका सखी या दूती से रतिवृत्ति जागरित करने वाले भाव व्यक्त करती है अथवा पथिक से वाक्चातुर्य द्वारा गोपनवृत्ति की अभिव्यक्ति करती है । शृङ्गार रस के अतिरिक्त अन्य रसों के भी अनेक उद्धरण मिलते हैं । श्री मधुसूदन मोदी ने "हेमसमीक्षा" नामक गुजराती पुस्तक में हेमचन्द्र के दोहों की विविधता की चर्चा की और भावात्मक दृष्टि से भी उनके मत में अठारह वीररसप्रधान साठ उपदेशात्मक, दस जैनधर्म सम्बन्धी, पांच पौराणिक पद्य हैं । शेष दोहों में से आधे तो शृङ्गार रस के लगते हैं और दो दोहे मुरंज के लगते हैं । श्री मोदी सूत्रों की वृत्ति में हेमचन्द्राचार्य के लगभग १७७ दोहों की चर्चा की अप है । इससे उनकी सर्वसङग्राहक दृष्टि का पता चलता है । आचार्य हेमचन्द्र ने भाषा, छन्द, साहित्यिकता तीनों दृष्टियों से अपभ्रंश को सुव्यवस्थित तथा समृद्ध किया है।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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