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________________ १७८ आचार्य हेमचन्द्र और उपदेशात्मक धार्मिक और खंडनमंडनात्मक प्रशस्तिमूलक रचनाएँ मिलीं हैं। इतना ही नहीं, इनके अतिरिक्त मुक्तकों के रूप में विशुद्ध लौकिक शृङगारिक काव्य भी मिले हैं। ___डॉ. होर्नलि के मत में आर्यों की कथ्यभाषाएँ भारत के आदिमनिवासी अनार्य लोगों की भिन्न-भिन्न भाषाओं के प्रभाव से जिन रूपान्तरों को प्राप्त हुई थीं वे ही भिन्न-भिन्न अपभ्रंश भाषाएँ । सर ग्रियर्सन प्रभृति आधुनिक भाषातत्वज्ञ इसको स्वीकार नहीं करते। इनके मत से व्याकरण नियमित भिन्न-भिन्न प्राकृत भाषाएँ जनसाधारण में अप्रचलित होने के कारण जिन नूतन कथ्यभाषाओं की उत्पत्ति हुई थी, वे ही अपभ्रंश भाषाएं हैं। ये अपभ्रंश भाषाएं ईसवी पंचम शताब्दी के बहुत काल पूर्व से ही व्यवहृत होती थीं। महाकवि कालिदास के 'विक्रमोर्वशीयम्' नाटक में अपभ्रंश के रूप पाये जाते हैं। अतः कालिदास के समय से ही अपम्नश भाषाएँ साहित्य में स्थान पाने लगी थीं, यह स्पष्ट है । ये अपभ्रंश भाषाएँ प्रायः दशम शताब्दी पर्यन्त साहित्य की भाषाएँ थीं। इन अपभ्रंश भाषाओं की मूल वे विभिन्न प्राकृत भाषाएँ हैं जो भारत के विभिन्न प्रदेशों में पूर्वकाल में प्रचलित थीं। ____ अपभ्रंश के बहुत भेद हैं । 'प्राकृतचन्द्रिका' में इसके २७ भेद बताये गये हैं। मार्कण्डेय ने अपने 'प्राकृत सर्वस्व' में इन भेदों को नगण्य कहकर समस्त अपभ्रंशों, को नागर, ब्राचउ, उपनागर, इन तीन प्रधान भेदों में ही विभाजित किया है। जिन अपभ्रंश साहित्य में निबद्ध होने से जो रूप पाये जाते हैं उनके लक्षण और उदाहरण आचार्य हेमचन्द्र ने केवल अपभ्रश के सामान्य नाम से और मार्कण्डेय ने अपभ्रश के तीन विशेष नामों से दिये हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने 'अपभ्रश' इस सामान्य नाम से जो उदाहरण दिये हैं वे राजपूताना तथा गुजरात प्रदेश के अपभ्रश से ही सम्बन्ध रखते हैं । ब्राचडापभ्रश सिन्ध प्रदेशीय अपभ्रश से सम्बद्ध है। इसके सिवाय शौरसेनी अपभ्रंश के निदर्शन मध्यदेश के अपभ्रश में पाये जाते हैं। महाराष्ट्री प्राकृत में व्यञ्जनों का लोप सर्वापेक्षा अधिक है । अपभ्रंश में उक्त नियम का व्यत्यय देखने में आता है । महाराष्ट्री में जो व्यञ्जन वर्णलोप देखा जाता है अपभ्रश में उसकी अपेक्षा अधिक नहीं, कम ही वर्णलोप पाया जाता है । ऋ, संयुक्त र कार भी विद्यमान है । वर्णलोप की गति ने महाराष्ट्री को स्वर बहुल आकार में परिणत कर दिया था । अपभ्रश में उसी १-वंगीय साहित्य परिषद् पत्रिका, १३१७
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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