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आचार्य हेमचन्द्र
हेमचन्द्र की धार्मिक आस्था का स्वरूप - धार्मिक आस्था के सम्बन्ध में विचार करते समय यह ध्यान में रखना चाहिये कि हिन्दू, बौद्ध, जैन सभी धर्मों ने भक्ति पथ को स्वीकार किया है । यह एक अत्यन्त प्राचीन साधना-मार्ग रहा है। आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थों के विवरण से यह प्रभावित होता है कि केवल स्तुतिस्तोत्र या स्तव-स्तवन ही नहीं पूजा, वन्दना, विनय, मंगल और महोत्सव के रूप में भी जैन भक्ति पनपती रही है । उनके मत से पूजा भक्ति का मुख्य अंग है। ध्यान और भाव पूजा को एक मानकर ध्यान-भक्ति की एकता ही आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्ध की है । उसके भावपूजा, द्रव्यपूजा जैसे कई प्रकार भी बतलाये गये हैं । विनय और श्रद्धा का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। नृत्य, गायन, वादन, नाटक, रास, रथ-यात्रा इत्यादि सभी कुछ भक्त के भावों की अभिव्यक्ति है। 'योगशास्त्र' के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जैनों का भगवान वीतरागी है । 'पर' में होने वाला राग ही बन्ध का हेतु है, परन्तु वीतरागी परमात्मा 'पर' नहीं अपितु 'स्व' आत्मा ही है । वीतराग में किया गया अनुराग निष्काम ही है। भगवान अरहन्त या सिद्ध राग-द्वेषरहित होने पर भी भक्तों को उनकी भक्ति के अनुसार फल देते हैं । इस प्रकार परमेश्वर की स्तुति पुण्यवर्धक कर्मों को जन्म देती है । स्तुति पुण्यभोग का निमित्त है, कर्म-क्षय का नहीं। भगवान जिनेन्द्र के चरण कमल-युगल की स्तुति को एक ऐसी नदी माना है जिसके शीतल जल से कालोदन दावानल उपशम हो जाता है, अर्थात मोक्ष मिलता है ।
आचार्य हेमचन्द्र ने अपने दर्शन ग्रन्थों में एक और आत्मा के गीत गाये तो दूसरी और अर्हन्त के चरणों के निकट श्रद्धा के दीपक जलाये । उन्हीं ने निर्गुण और सगुण जैसे खण्डों की कभी कल्पना नहीं की।
हेमचन्द्र के ग्रन्थों से विदित होता है कि तीर्थयात्रा से भी भक्ति पर प्रदर्शित की जाती है । 'प्रबन्ध चिन्तामणि' के अनुसार सम्राट कुमारपाल ने गिरनार की तीर्थ-यात्रा की थी। उस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ लगवायी थीं। उसने शत्रुञ्जय तीर्थक्षेत्र के उद्धार में १ करोड ६० लाख रुपया व्यय किया था। स्वयं आचार्य हेमचन्द्र भी तीर्थ यात्रा करते थे।
तर्थङकरो के जन्म महोत्सव, रथ-यात्रा महोत्सव, इत्यादि प्रकारों से भी धार्मिक आस्था प्रकट की जाती थी। धार्मिक आस्था प्रकट करने के ये प्रकार आचार्य हेमचन्द्र को मान्य हैं। उन्होंने अपने महावीरचरित में उस रथ-यात्रा महोत्सव का सरस वर्णन किया है जो सम्राट कुमारपाल ने सम्पन्न करवाया था। १-प्रतिग्राम प्रतिपुरमासमुद्र महीतले । रथयात्रोत्सवं सोऽहत्प्रतिमानां करिष्याति
हेमचन्द्राचार्य-महावीरचरित-सर्ग १२-श्लो, ७६