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________________ आचार्य हेमचन्द्र मन्दिर बनवाये एवं तालाब खुदवाये। इस प्रकार अणहिल्लपुरपाटन को सोलंकियों ने धीरे-धीरे विकसित किया और यह नगरी श्रीमाल, वलभी तथा गिरिनगर की नगरश्री की उत्तराधिकारिणी हुई। इस उत्तराधिकार में कान्यकुब्ज, उज्जयिनी एवं पाटलिपुत्र के भी संस्कार थे। इस अभ्युदय की पराकाष्ठा जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल के समय में दिखाई दी और पौन शताब्दी से अधिक काल तक स्थिर रही। आचार्य हेमचन्द्र इस युग में हुए थे। उन्हें इस संस्कार-समृद्धि का लाभ प्राप्त हुआ या । वे इस युग की महान कृति थे, किन्तु आगे चल कर वे युग-निर्माता बन गये । १२ वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वलभी, उज्जयिनी, काशी प्रभृति समृद्ध शाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परा में गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करने का प्रयास किया । आचार्य हेमचन्द्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों से मुक्त हो, शोभा का समुद्र, गुणों का आकर, कीर्ति का कैलास एवं धर्म का महान केन्द्र बन गया। शासकों की कलाप्रियता ने नयनाभिराम स्थापत्यों का निर्माण कराया। इस प्रकार अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र सर्वजनहिताय एवं सर्वोपदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। भीमदेव प्रथम के समय में शैवाचार्य ज्ञानभिक्षु और सुविहित जैन साधुओं को पाटन में स्थान दिलाने वाले पुरोहित सोमेश्वर के दृष्टान्त प्रभावक चरित में वर्णित हैं । भीमदेव प्रथम और कर्णदेव के काल में अणहिलपुरपाटन देश-विदेश के विख्यात विद्वानों के समागम और निवास का स्थान बन गया था, ऐसा प्रभावक चरित के उल्लेखों से मालूम होता है । भीमदेव का सन्धि विग्रहिक 'विप्र डामर', जिसका हेमचन्द्र दामोदर के नाम से उल्लेख करते हैं, अपनी बुद्धिमत्ता के कारण प्रसिद्ध हुआ होगा, ऐसा जान पड़ता है । कर्ण के दरबार में काश्मीरी कवि बिल्हण, जिन्होंने 'कर्णसुन्दरी' नामक नाटक लिखा था ( १०८०-६० ); शैवाचार्य ज्ञानदेव, पुरोहित सोमेश्वर, सुराचार्य मध्यदेश के ब्राह्मण पण्डित श्रीधर और श्रीपति, जो आगे जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर के नाम से जैन साधुरूप में प्रसिद्ध हुए; जयराशि भट्ट के तत्वोपप्लव की युक्तियों के बल से पाटन की सभा में वाद करने वाला भृगुकच्छ (भडोंच)का कौलकवि धर्म, १ -प्रभावक् चरित (निर्णय सागर), पृष्ठ २०६ से ३४६ । .
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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