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आचार्य हेमचन्द्र
विभाग में आने वाले प्रमाण दूसरे विभाग से असङ्कीर्ण रूप से अलग हो जाते हैं । दूसरी बात यह है कि सभी प्रमाण बिना खींच-तान के इस विभाग में समा जाते हैं । प्रत्यक्ष अनुभव को सामने रखकर आचार्य जी ने प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष ऐसे दो मुख्य विभाग किये जो एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं । इसमें न तो चार्वाक की तरह परोक्षानुभव का अपलाप है, न बौद्ध-दर्शन-सम्मत प्रत्यक्ष अनुमान द्वैविध्य की तरह आगम आदि इतर प्रमाण व्यापारों का अपलाप है, न त्रिविध प्रमाणवादी सांख्य तथा प्राचीन वैशेषिक, न चतुर्विध प्रमाणवादी नैयायिक, पच्चविध प्रमाणवादी प्रभाकर, षविध प्रमाणवादी मीमांसक, सप्तविध या अष्टविध प्रमाणवादी पौराणिक आदि की तरह अपनी प्रमाण संख्या का अपलाप है। चाहे जितने प्रमाण हों, वे या तो प्रत्यक्ष होंगे या परोक्ष । इस प्रकार प्रमाण शक्ति की मर्यादा के विषय में जैन दर्शन का या कहें हेमचन्द्र इन्द्रियाधिपत्य तथा अनिन्द्रियाधिपत्य दोनों स्वीकार करके उभयाधिपत्य का ही समर्थन करते हैं।
प्रत्यक्ष का तात्विक विवेचन करते हुए आचार्य हेमचन्द्र की मत है कि इन्द्रियाँ कितनी ही पटु क्यों न हों, पर वे अन्तत: हैं परतन्त्र ही ! परतन्त्रजनित ज्ञान को अपेक्षा स्वतंत्र-जनित ज्ञान को ही प्रत्यक्ष मानना न्याय सङ्गत है। स्वतन्त्र आत्मा के आश्रित ज्ञान ही प्रत्यक्ष हैं । आचार्य के ये विचार तत्वचिंतन में मौलिक हैं। ऐसा होते हुए भी लोक-सिद्ध प्रत्यक्ष को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहकर उन्होंने अनेकान्त दष्टि का उपयोग किया है।
___'प्रमाण मीमांसा' में सन्निपातरूप प्राथमिक इन्द्रिय व्यापार से लेकर अन्तिम इन्द्रिय व्यापार तक का विश्लेषण एवं स्पष्टता के साथ अनुभव सिद्ध अतिविस्तृत वर्णन है । यह वर्णन आधुनिक मानस-शास्त्र तथा इन्द्रिय व्यापार-शास्त्र का वैज्ञानिक अध्ययन करने वालों के लिए बहुत महत्व का है।
आचार्य ने सभी प्रकार के ज्ञानों को प्रमाण कोटि में अन्तर्भुक्त किया जिनके बल पर वास्तविक व्यवहार चलता है। सभी प्रमाण-प्रकारों को उन्होंने परोक्ष के अन्तर्गत लेकर अपनी समन्वय दृष्टि का परिचय कराया है। वे इन्द्रियों का स्वतन्त्र सामर्थ्य मानते हैं। उसी प्रकार अनिन्द्रिय अर्थात् मन और आत्मा दोनों का अलग-अलग भी स्वतन्त्र सामर्थ्य मानते हैं। वे सभी आत्माओं का स्वतन्त्र प्रमाण सामर्थ्य मानते है प्रमाण सामर्थ्य मानते है। इसके विपरीत न्यायदर्शन के अनुसार केवल ईश्वर मात्र का प्रमाण सामर्थ्य इष्ट है, किन्तु हेमचन्द्र की दृष्टि से अनिन्द्रिय का भी प्रमाण सामर्थ्य इष्ट है, इन्द्रियों का प्रमाण-साम