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________________ हेमचन्द्र के अलङ्कार-ग्रन्थ 1 so के मत का खण्डन किया है, किन्तु डा० रसिकलाल पारीख ने भी 'काव्यानुशासन' को एक सर्वोत्कृष्ट पाठ्यपुस्तक बताया है । सत्य बात यह है कि आचार्य हेमचन्द्र के सम्मुख सभी स्तर के पाठक थे । वे युग-पुरुष थे एवं प्रचार-प्रसार उनका उद्देश्य था । अतः सूत्र - शैली में ग्रन्थ-रचना की और फिर साधारण पाठकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उन्होंने 'अलङकारचूड़ामणि' लिखा । विशेष ज्ञान की पिपासा रखने वाले मेधावी छात्रों के लिए 'विवेक' नामक विवृति लिखकर उन्हें भी ज्ञानवृद्धि का अवसर दिया है। इस प्रकार सभी कोटि की जनता के लिए 'काव्यानुशासन' ग्रन्थ उपादेय बन गया है । मम्मट का 'काव्यप्रकाश' एक तो क्लिष्ट है, साधारण पाठकों के लिए वह सुगम नहीं, और संस्कृत के काव्य के अतिरिक्त अन्य साहित्य विद्याओं का अध्ययन करने के लिए पाठकों को दूसरे ग्रन्थ भी देखने पड़ते हैं । हेमचन्द्र का 'काव्यानुशासन' इस अर्थ में परिपूर्ण ग्रन्थ है । उसमें काव्य के अतिरिक्त नाटक, नाटिका, कथा, चम्पू आदि साहित्य की विविध शाखाओं का समुचित परिचय दिया गया है । अतः आचार्य हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' का अध्ययन करने के पश्चात् फिर दूसरा ग्रन्थ पढ़ने की जरूरत नहीं रहती । ११७ डा० एस० के डे० ने काव्यानुशासन को केवल एक शिक्षा-ग्रन्थ कहा है, यह मत नितान्त भ्रान्त है । निःसन्देह उसमें कवि - शिक्षा प्रकरण हैं, किन्तु इससे वह ग्रन्थ केवल शिक्षा-ग्रन्थ की कोटि में नहीं आ सकता । 'काव्यानुशासन' में काव्य - शास्त्र के सभी अङ्गों पर सविस्तार विचार किया गया है। अतः वह सम्पूर्ण काव्य-शास्त्र पर सुव्यवस्थित तथा सुरचित प्रबन्ध है । जिस प्रकार हेमचन्द्र ने गुजरात के लिए पृथक् व्याकरण दिया, उसी प्रकार उन्होंने गुजरात के सभी स्तरों के पाठकों के लिए एक उत्कृष्ट अलङकार-ग्रन्थ भी दिया। यह ग्रन्थ अब साहित्यशास्त्र के प्रत्येक जिज्ञासु के लिए उपादेय ग्रन्थ बन गया है । अलङ्कार शास्त्र के उत्कृष्ट ग्रन्थों में आज आचार्य हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' की गणना होती है। ――
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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