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धार्मिक विचार
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तथा पंच परमेष्ठी और निज आत्मा का ध्यान करना ये ६ अंतरंग तप हैं।' तोन गुप्तियां :- .
वे मन गुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति रूप ३ गुप्तियों को पालन करते हैं। दशधर्म :
सत्तममा, उत्तम मार्दव रम ग्रार्जन, नतम शीच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम नप, उत्तम त्याग, उत्तम प्राकिंचन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य इन दशधर्मों को मुनि धारण करते हैं । बारह भावनाएं :___अनित्य, अशरण, संमार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, बोधिदुर्लभ, धर्मानुप्रेक्षा, लोक भावना इन १२ भावनाओं का चिन्तन मुनिराज निरन्तर करते रहते हैं । बाईस परीषह-जय :
क्षुधा (भूरस सहन करना}, नृषा (प्यास सहन करना], शीत (ठंड सहन करना), उष्ण (गर्मी सहन करना), नग्न रहने में दुःख न मानना, याचना नहीं करना, अनिष्ट संयोग में अरति न करना, अलाभपरीषह, (पारणा के दिन निर्दोष प्राहार का लाभ न होना!, दंशमशक (मच्छर आदि के काटने पर सहनशील रहना), अपनी निंदा सुनकर आक्रोश न करना, रोग परीषह रोग आने पर दुःखी परिणाम नहीं करना , तृण परीषह (शरीर में कांदा आदि लगने पर उसे नहीं निकालना), अज्ञान परीषह (श्रुत का पूर्ण लाभ न होना), प्रदर्शन परीषह (प्रयोजन सिद्धि न होने पर भी क्लेश न करना), प्रज्ञा परीषह जान का गर्व न करना), सत्कार-पुरस्कार परीषह (सत्कार में हर्ष अगादर में विषाद नहीं करना, शय्या परीषह (कोमल त्रय्या पर सोने का अनुराग छोड़ना), चर्या परीषह (यमन में दुःख
१. पु. सि. पद्य १६८, १९६, २. यही, २०२ ३. बही, पद्य २०४ ४. वही, पद्य २०५ ५. वही, पद्य २०६, २०८