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________________ धार्मिक विचार | froat तथा व्यवहारी सुनि : अन्यत्र उन्होंने निश्चयी तथा व्यवहारी मुनियों के स्वरूप का भी उल्लेख किया है। उनमें जो स्वद्रव्य (आत्मा) की श्रद्धा करता है, स्वद्रव्य को जानता है और स्वद्रव्य के प्रति उपेक्षाभाव रखता है वह निश्चय नय से श्रेष्ठ मुनि है । जो परद्रव्य की (७ तत्त्वों की भेद रूप) श्रद्धा करता है, परद्रव्य को जानता है तथा परद्रव्य के प्रति उपेक्षाभाव रखता है वह व्यवहारी मुनि माना गया है ।" चार प्रकार के श्रमण संघ : आचार्य अमृतचन्द्र ने ४ प्रकार के श्रमण संघों का भी संकेत किया है । वे ४ प्रकार है ऋषि, मुनि, यति और अनगार। इनमें ऋद्धि प्राप्त को ऋषिः प्रवधि, मनः पर्यय तथा केवलज्ञानी को मुनि उपशम या क्षपक श्रेणी में प्रारूढ़ को यति और सामान्य साधुनों को अनगार कहते हैं । इन चारों प्रकार के श्रमण संघों के उपकार का अनुराग शुभोपयोगी मुनियों में होता है युद्धोपयोगियों में नहीं पी श्राचार्य, उपाध्याय तथा साधु भी शुद्धोपयोगी मुनि की बन्दना आदि करते हैं । उक्त प्रवृत्ति शुद्धोपयोगियों के नहीं होती । [ ४८ मुनियों के ५ प्रकार : पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ तथा स्नातक ये ५ प्रकार भी मुनियों के कहे गये हैं। इनमें बकुश के शरीर अकुश तथा उपकरण बकुश ये दो भेद हैं । कुशल के प्रतिसेवना तथा कषाय ये दो प्रकार हैं। इनके १. ३. स्वद्रव्यं श्रद्दधानस्तु बुध्यमानस्तदेव हि । तदेवापेक्षमाणश्च निःचयान्मुनिसत्तमः ॥६ श्रद्धानं परद्रव्यं बुध्यमानस्तदेव हि । तदेवोपेक्षमाणाश्च व्यवहारी स्मृतो मुनिः । ५ ।। - तत्वार्थसार उपसंहार । "चातुर्वर्णस्य श्रममासघस्योपकारकरणप्रवृत्तिः सा सर्वापि रामप्रधानत्वात् शुभनामेव भवति, न कदाचिदपि शुद्धोपयोगिनाम् । " श्रमणेषु यदननमकरण - " प्रवचनमार गाथा १४९ तथा २४७ की टीका । शोधा कुशीलो द्विविधस्तथा "पु·ाको त्रिन्थः स्नातकश्चैव नियंन्थाः पञ्च कीर्तिताः ॥ तत्वार्थसार श्र. ७ पद्य ५८ ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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