SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . धार्मिक विचार ] [ ४८७ . ' होते है । १ वे मोह रूपी सेना को जीतने के लिए कमर कसे रहते हैं। उन्हें मोह सेना जीतने का उपाय उपलब्ध हो जाता है। उनकी मति व्यवस्थित हो जाती है। वह समस्त परद्रव्यों में मध्यस्थ होता है । उनके मोह ग्रंथि के क्षय होने से रागद्वेष का भी क्षय होता है, रागद्वेष के क्षय होने मे वे सुख-दुख में समान बने रहते हैं और समानता के कारण ही मध्यस्थ लक्षण वाले श्रमणपने को प्राप्त करते हैं, जिससे अक्षय सुख की प्राप्ति होती है ।' यथार्थ में मुनि के द्वारा शुद्धात्मा की वृत्ति ही निरन्तर अपनाई जाती है। वे पागम चक्षु होते हैं । वे सर्व बातों का निर्णय आगम से ही करते हैं। संयत साधु का लक्षण साम्य है । वे शत्र-मित्र में, सुख-दुख में, प्रशंसा-निंदा में, मिट्टो तथा सोने में, जीवन-मरण में, अपने पराये, प्रह्लाद परिणाम में, यश-अपयश में, उपयोगी-अनुपयोगी में स्थायीअस्थायी में इस प्रकार सर्वत्र ही मोह नाश होने के कारण समता भाव धारण करते हैं। १. अनुसरतां पदमेतत् करम्बिनाचार नित्यनिरभिमुना । एकांत विररूपा भवति मुनीनामलौकिकी वृतिः ॥ १६ ॥ -पुरुषार्थ सिदयुपाय २ 'प्रतो मया मोहवाहिनी विजयाय बद्धाकक्षेपम ।" -प्रवचनसार गाथा ७९ की टोका ३. नयी मया मोहयाहिनी विजयोपायः ।" -वहीं, गाथा ८० को टीका ४, यवस्थिता मलिमम ।" -वही. गाथा ८२ की टीका ५. 'ततोऽहमेस सर्वस्मिन्नेन पन्द्रले मध्यस्थो भवामि ।" -प्रवचनसार गाथा १५९ दीका ६. "मोहन थिक्षपणाद्धि तमनरागद्वेषक्षपणं तत: समसुखदुःखस्य परममाध्य. स्थलक्षणे श्रामो भवन, ततोऽनाकुलत्वलक्षगाक्षयसौख्यलाभ ।' वहो गाथा १९५ की टीका ७. संशुद्धात्मद्रव्यमबैकन त्या, नित्यं युक्तः स्बीयतेऽस्माभिरेवम् ।' -वही गाथा २०० टीका का छंद नं, १० ८. "श्रमणाः आगमचक्षुषो भवन्ति ।" "यथागमचक्षुषासर्वमेव दृश्यत एवेति समर्थयति ।" । वही, गापा २३४ की टीका उत्थानिका २३५ को
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy