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________________ ४८२ ] | प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व ने स्पष्ट घोषित किया है कि हे जिनेन्द्र ! गण दोष की उत्पत्ति में बाला वस्त निमित्त मात्र है. तथा अभ्यंतर कारण - उपादान उसका मूल हेतु है । अध्यात्मार्गी के वह अभ्यंतर कारण ही पर्याप्त है। उसे वाह्य कारण प्रमुख नहीं है। उसकी दृष्टि में बाह्य कारण की सन्निधि गौणपने स्वीकार्य है। प्राचार्य अमृतचन्द्र ने भी उपरोक्त विचारों की स्पष्ट रूप से घोषणा की है, कि प्रात्मा स्वयं ही देव है, अचित्य शक्ति का धारक है क्योंकि वह चैतन्य चिन्तामणि रत्न ही है, अतः ज्ञानी सर्व प्रकार से शुद्धात्मा को धारण करते हैं, उन्हें अन्य परिग्रहों से क्या प्रयोजन ? अर्थात् कुछ भी प्रयोजन नहीं है । उभय कारणों की समन्वित स्थिति पर प्रकाश डालते हए वे लिखते हैं कि निदनय से स्त्र ही अथवा पर ही एकमात्र कारण नहीं है, अपितु कार्य की सिद्धि में उभय कारणों को विद्यमानता होती है। अंतरंग तथा बहिरंग कारणों में समस्त वस्तुओं में अनंत पर्यायों की संतति प्रकट होती है, इस बात का ज्ञान अज्ञानी जीव को नहीं होता परन्तु उन पर्यायों की संतति को आप संपूर्णतया जानते हैं ! हे जिनेन्द्र ! बहिरंग कारणों की निश्चित व्यवस्था के कारण अन्य पदार्थ को निमित्त मात्रपना प्राप्त कराते हुए भी आप स्वयं ही केवल अपने द्वारा अत्यधिक विभेदों से परिपूर्ण परिणमन को प्राप्त होते हैं। इससे स्पष्ट है कि उपादान द्वारा मम्पन्न होने वाले कार्यों के बाह्य कारण -निमित्त भी व्यवस्थित है - निश्चित है, जिनेन्द्र के ज्ञान में फलित हैं। अतः निमिलों की जोड़ तोड़ में परतंत्र होना व्यर्थ है। वास्तव में श्रात्मा का पर द्रव्यों के साथ कोई कारक सम्बन्ध नहीं है कि जिससे शुद्धात्म स्वरूप की प्राप्ति हेतु बाह्य सामग्री निमितों की खोज में व्यग्र होकर परतंत्र होते हैं। जिनकी दृष्टि निमित्त रूप बाह्य कारणों में लगी रहती है वे मिथ्या दृष्टि हैं। प्राचार्य श्री ने उक्त बात का भी उल्लेख किया है कि स्ब - पर की आकृति के ग्रहण १. ग. रद. लोग, पहा ५६ २. स. सा. क. १४४ ३. ल. न. स्फोट. प्र. १५. पद्य १५ ४. ल. त. स्फोट, अ. ४ पद्य १२ ५. म. त, स्फोट अ. १३ पद्य २२ ६. प्रवचनसार गा. १६ टोका ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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